Wednesday, February 5, 2025

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नहीं रहे शिया धर्मगुरु और अरबपति आगा खान चतुर्थ

शिया धर्मगुरु और दिग्गज अरबपति आगा खान चतुर्थ नहीं रहे। पुर्तगाल में 88 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनको मोहम्मद पैगंबर वंश का प्रत्यक्ष वंशज माना जाता था। आगा खान फाउंडेशन और इस्माइली धार्मिक समुदाय ने एलान किया कि आगा खान चतुर्थ के उत्तराधिकारी को उनकी वसीयत में नामित किया गया है। जिसे लिस्बन में उनके परिवार और धार्मिक नेताओं की उपस्थिति में बताया जाएगा। हालांकि इसकी तारीख की घोषणा नहीं की गई है। आगा खान फाउंडेशन ने एक्स पर लिखा कि शिया इस्माइली मुसलमानों के 49वें वंशानुगत इमाम और पैगंबर मोहम्मद के वंशज प्रिंस करीम अल-हुसैनी आगा खान चतुर्थ का 88 वर्ष की आयु में अपने परिवार के बीच लिस्बन में निधन हो गया। उनके नामित उत्तराधिकारी की घोषणा बाद  में की जाएगी। आगा खान चतुर्थ ने दुनिया के सबसे गरीब और सबसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए मानव, वित्तीय और तकनीकी संसाधनों को एक साथ लाने के लिए 1967 में आगा खान फाउंडेशन की स्थापना की थी। यह फाउंडेशन अफ्रीका, एशिया, यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अमेरिका के 18 देशों में काम करता है। आगा खान फाउंडेशन उनके परिवार और दुनिया भर के इस्माइली समुदाय के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता है।

आगा खान विकास नेटवर्क ने बताया कि आगा खान के दादा ने उनके पिता को दरकिनार करके शिया इस्माइली मुसलमानों के प्रवासी समुदाय का नेतृत्व करने के लिए अपना उत्तराधिकारी बनाया था। तब आगा खान छात्र थे। उनके दादा का कहना था कि उनके अनुयायियों का नेतृत्व एक ऐसे युवा व्यक्ति को करना चाहिए जिसका लालन-पालन नए युग के बीच हुआ हो। आगा खान चतुर्थ एक व्यवसायी और परोपकारी व्यक्ति थे। वे उन्होंने हावर्ड से स्नातक की उपाधि ली थी।

उनके निधन की सूचना के बाद यूरोप और मध्य पूर्व के समुदायों में शोक की लहर दौड़ गई। इस दौरान उनकी ओर से विकसित संगठनों ने शोक जताया। कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने उन्हें एक असाधारण दयालु वैश्विक नेता और अपना बहुत अच्छा दोस्त बताया। उन्होंने कहा कि दुनिया भर के लोगों को उनकी बहुत याद आएगी। जुलाई 1957 में आगा खान चतुर्थ को महारानी एलिजाबेथ ने महामहिम की उपाधि दी थी। वह 19 अक्टूबर 1957 को तंजानिया के दार एस सलाम में उसी स्थान पर आगा खान चतुर्थ बने थे जहां एक बार उनके दादा को अपने अनुयायियों ने उपहार में अपने वजन के बराबर हीरे दिए थे।

 

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