Friday, December 26, 2025

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नक्सलवाद पर अंतिम प्रहार: माओवादियों के पास आत्मसमर्पण के लिए 31 जनवरी तक का समय, सरकार खत्म करने जा रही है सरेंडर पॉलिसी

रायपुर/नई दिल्ली: नक्सलवाद के विरुद्ध अपनी लड़ाई को निर्णायक मोड़ पर पहुँचाते हुए सरकार ने माओवादियों के लिए एक अंतिम और महत्वपूर्ण समय-सीमा (डेडलाइन) तय कर दी है। आधिकारिक घोषणा के अनुसार, हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौटने के इच्छुक माओवादियों के पास अब केवल 31 जनवरी 2026 तक का ही विकल्प शेष है। इसके बाद सरकार अपनी वर्तमान ‘आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति’ को पूरी तरह समाप्त कर देगी।

सरकार का कड़ा रुख: अब केवल सैन्य कार्रवाई का रास्ता

गृह मंत्रालय और राज्य सरकारों के साझा समन्वय से लिए गए इस फैसले का स्पष्ट अर्थ है कि 31 जनवरी के बाद किसी भी माओवादी को आत्मसमर्पण के आधार पर रियायतें या सरकारी लाभ नहीं दिए जाएंगे। निर्धारित समय-सीमा समाप्त होने के बाद, सुरक्षा बल ‘सर्च एंड डिस्ट्रॉय’ (खोजो और समाप्त करो) की नीति पर काम करेंगे। अधिकारियों का कहना है कि सरकार अब बातचीत या नरम रुख अपनाने के बजाय नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए पूर्ण सैन्य अभियान पर ध्यान केंद्रित करेगी।

आत्मसमर्पण नीति के तहत मिलने वाले लाभ

वर्तमान नीति के तहत, आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को निम्नलिखित सुविधाएं दी जाती रही हैं, जो 31 जनवरी के बाद उपलब्ध नहीं होंगी:

  • नकद प्रोत्साहन: हथियार डालने पर सरकार द्वारा तत्काल आर्थिक सहायता।
  • पुनर्वास सहायता: घर बनाने के लिए जमीन या वित्तीय मदद।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण: मुख्यधारा में रोजगार के लिए कौशल विकास।
  • कानूनी रियायत: उनके विरुद्ध चल रहे आपराधिक मामलों में कानूनी सहानुभूति।

बस्तर और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में हाई अलर्ट

इस घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ के बस्तर, दंतेवाड़ा और सुकमा जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा गांवों में पर्चे बांटकर और लाउडस्पीकर के माध्यम से माओवादियों को सूचित किया जा रहा है कि यह उनके पास सामान्य जीवन जीने का ‘अंतिम अवसर’ है। सूत्रों के अनुसार, सरकार ने यह फैसला इसलिए लिया है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में नक्सली हिंसा की घटनाओं में भारी कमी आई है और सुरक्षा बलों का घेरा अब उनके अंतिम गढ़ों तक पहुँच चुका है।

रणनीतिक बदलाव के मायने

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से दो बड़े प्रभाव होंगे। पहला, यह उन माओवादियों पर दबाव बनाएगा जो संगठन छोड़ना चाहते हैं लेकिन निर्णय नहीं ले पा रहे थे। दूसरा, यह उन सक्रिय लड़ाकों को कड़ा संदेश देगा जो अभी भी हिंसा में विश्वास रखते हैं, कि भविष्य में उनके लिए केवल दंडात्मक कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प बचेगी।

मुख्यमंत्री और गृह मंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि 1 फरवरी से राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों का अभियान और अधिक आक्रामक होगा, जिसका लक्ष्य ‘शून्य नक्सलवाद’ (Zero Naxalism) के लक्ष्य को प्राप्त करना है।

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