नई दिल्ली/कुआलालम्पुर — भारत व ASEAN के बीच रणनीतिक साझेदारी अब केवल संभावनाओं का वादा नहीं रह गई है, बल्कि सामने आई नई वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में वास्तविक समाधान-प्रस्ताव देने वाली दिशा में आगे बढ़ रही है। इस बात की पुष्टि इस सप्ताह आयोजित 22nd ASEAN–India Summit के दौरान Narendra Modi ने की जब उन्होंने कहा कि भारत-ASEAN साझेदारी “एक मजबूत आधार बनकर उभर रही है” जो वैश्विक स्थिरता व विकास को समर्थित करेगी।
चुनौतियाँ सामने हैं
- वैश्विक आपूर्ति-शृंखला में व्यवधान, डिजिटल विभाजन, खाद्य-सुरक्षा व परिवहन-लॉजिस्टिक्स में बढ़ती जटिलताएँ अब रणनीतिक रूप से बड़ी समस्या बन चुकी हैं।
- तटीय एवं समुद्री सीमाओं पर सुरक्षा, ब्लू इकॉनॉमी तथा प्राकृतिक आपदाओं के जवाब में सक्षम व्यवस्था आदि में भी नई चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।
- इन सबके बीच, “समावेशी विकास” व “स्थिरता” की मांग तेजी से बढ़ रही है — विशेष रूप से स्थानीय-समुदायों, युवाओं व महिलाओं के आर्थिक अवसरों की दृष्टि से। समाधान-प्रस्ताव जो सामने आए
- भारत-ASEAN ने डिजिटल शामिलता, लॉजिस्टिक्स व आपूर्ति-शृंखला की लचीलापन, और खाद्य-सुरक्षा सहयोग को प्रमुख एजेंडा बनाया है।
- 2026 को “ASEAN-India वर्ष हिंद-प्रशांत समुद्री सहयोग” के रूप में घोषित किया गया, ताकि समुद्री मार्ग, पोर्ट-कनेक्टिविटी व ब्लू इकॉनॉमी में साझेदारी को बढ़ावा मिले।
- पर्यटन, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, हरित ऊर्जा और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भी चौतरफा सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी है।
- स्थानीय समुदायों को पर्यटन, ग्रामीण उद्यमिता व महिलाओ तथा युवाओं की भागीदारी के माध्यम से सीधे लाभ पहुँचाने के लिए नीति-प्रस्ताव शामिल हुए हैं।
क्यों यह महत्वपूर्ण है
- भारत व ASEAN एक-साथ मिलकर लगभग एक-चौथाई विश्व जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं — यह मात्र संख्या नहीं, साझा भूगोल, सांस्कृतिक-ऐतिहासिक संबंध व रणनीतिक अवसर भी दर्शाती है।
- इन साझेदारियों की गहराई से क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक विकास व रणनीतिक स्वायत्तता में वृद्धि संभव है — विशेषकर अस्थिर वैश्विक परिस्थितियों के बीच।
- प्रस्तावित समाधान वास्तव में यह संकेत देते हैं कि विकास-मापदंड अब केवल आर्थिक वृद्धि तक सीमित नहीं हैं, बल्कि समावेशी, लचीला व सामुदायिक-केन्द्रित होंगे।
आगे की राह
- भारत-ASEAN को अपनी मुक्त व्यापार-वर्गीय (FTA) व्यवस्था का पुनरावलोकन शीघ्र करना है ताकि व्यापार-प्रवाह और निवेश अवसरों को तेजी मिले।
- समुद्री एवं तटीय सहयोग को व्यवहारिक रूप देना होगा: पोर्ट-लिंक-लॉजिस्टिक्स, नौवहन सुरक्षा व ब्लू इकॉनॉमी गतिविधियाँ त्वरित गति से आगे बढ़ें।
- डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, साइबर-सुरक्षा, और स्थानीय-बेस्ड उद्यमियों को समर्थन देकर विकास को और अधिक समावेशी बनाना होगा।
- नीति-प्रसार, संसाधन सुनिश्चित करना व वास्तविक क्रियान्वयन-मेकैनिज्म तैयार करना आवश्यक होगा ताकि प्रस्तावित समाधान बातें बनकर रह न जाएँ बल्कि क्रियान्वित हों।





