अब फेफड़ों का कैंसर केवल धूम्रपान करने वालों तक सीमित नहीं रह गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो और नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (NCI) द्वारा किए गए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि जो लोग कभी सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते, उनके फेफड़ों में भी ट्यूमर और डीएनए म्यूटेशन पाए जा रहे हैं – और इसका मुख्य कारण वायु प्रदूषण है।
यह शोध प्रसिद्ध ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इसके निष्कर्षों को विशेषज्ञ वैश्विक स्वास्थ्य नीति और शहरी नियोजन के लिए चेतावनी मान रहे हैं।
डीएनए म्यूटेशन और कैंसर का संबंध
शोधकर्ताओं के अनुसार, वायु प्रदूषण के लंबे संपर्क में रहने से डीएनए में स्थायी बदलाव (म्यूटेशन) हो सकते हैं। यह बदलाव कोशिकाओं की जीन संरचना को प्रभावित करते हैं, जिससे प्रोटीन निर्माण की प्रक्रिया बाधित होती है, और कैंसर जैसे रोग पनपने लगते हैं।
पारंपरिक हर्बल दवाएं भी एक कारक
कुछ पारंपरिक हर्बल दवाएं भी डीएनए को नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे फेफड़ों में ट्यूमर बनने की आशंका बढ़ जाती है।
सेकंड हैंड स्मोक से ज्यादा खतरनाक प्रदूषण
अध्ययन में यह भी पाया गया कि सेकंड हैंड स्मोक यानी दूसरों के धुएं के संपर्क में रहने से हुए बदलाव वायु प्रदूषण की तुलना में कम खतरनाक हैं। ऐसे मामलों में ट्यूमर में हल्के बदलाव देखे गए, लेकिन कैंसर को बढ़ाने वाले जेनेटिक संकेत (सिग्नेचर) नहीं मिले।
तेजी से बढ़ रहा खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि शहरीकरण और वायु गुणवत्ता में गिरावट के चलते नॉन-स्मोकर्स में फेफड़ों के कैंसर के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। यह ट्रेंड स्वास्थ्य सेवाओं और नीतियों के लिए गंभीर चुनौती है।
यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि अब फेफड़ों के कैंसर को केवल धूम्रपान से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। स्वस्थ जीवनशैली के बावजूद प्रदूषित वातावरण में रहना भी उतना ही घातक हो सकता है। विशेषज्ञों ने बेहतर वायु गुणवत्ता, साफ ऊर्जा और सतर्क शहरी योजनाओं की सख्त जरूरत पर जोर दिया है।