उत्तरकाशी जिले का धराली क्षेत्र आज भी एक महीने पहले आई आपदा के गहरे जख्म समेटे हुए है। प्राकृतिक कहर थम चुका है, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। चारों ओर फैला मलबा उस भयावह पल की याद दिलाता है, जब पलभर में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था।
आपदा के दौरान बर्फीली धारा और भारी मलबे ने गांव की बस्तियों, सड़कों और खेतों को तहस-नहस कर दिया था। कई मकान और होटल जमींदोज हो गए, तो कहीं दरारें इतनी गहरी हैं कि लोग अब भी अपने घरों में लौटने से डर रहे हैं। कई परिवार अब अस्थायी आश्रयों में रह रहे हैं और रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल हालात में गुजर रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि राहत और पुनर्वास की प्रक्रिया बेहद धीमी है। एक महीने बीत जाने के बावजूद मलबा हटाने का काम पूरा नहीं हो पाया है। न सड़कें सुचारु रूप से खुली हैं, न ही बुनियादी सुविधाएं पूरी तरह बहाल हो सकी हैं। इस कारण ग्रामीणों में नाराजगी और चिंता दोनों बनी हुई है।
धराली, जो कभी पर्यटन के लिहाज से गुलजार रहता था, अब सुनसान पड़ा है। होटल और दुकानें बंद हैं, खेत बंजर नजर आ रहे हैं। व्यापारियों और स्थानीय लोगों की आजीविका पर बड़ा असर पड़ा है। वहीं, ग्रामीणों की आंखों में तबाही का मंजर अब भी ताजा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की आपदाओं के बाद पुनर्निर्माण की प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है, लेकिन स्थानीय स्तर पर त्वरित राहत इंतजाम जरूरी हैं। ग्रामीणों की मांग है कि सरकार और प्रशासन स्थायी पुनर्वास, सड़क बहाली और आर्थिक मदद को तेजी से आगे बढ़ाए।
धराली आपदा आज भी एक कड़वी हकीकत की तरह लोगों के सामने खड़ी है, जहां हर तरफ बिखरा मलबा सिर्फ यह बताता है कि प्रकृति का रौद्र रूप पलभर में इंसानी बसावट को वीरानी में बदल सकता है।