उत्तराखंड के देवप्रयाग स्थित संस्कृत केंद्रीय विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में एक ऐतिहासिक शैक्षिक आंदोलन की नींव रखी गई है। यहां देशभर से आए संस्कृत विद्वानों ने एक ऐसे मिशन की शुरुआत की है, जो आने वाले वर्षों में भारतीय शिक्षा पद्धति को मौलिक रूप से बदलने वाला है।
लक्ष्य: लाखों ग्रंथों का संस्कृत में भारतीय दृष्टिकोण से पुनर्निर्माण
इस अभियान का उद्देश्य केवल अंग्रेजी ग्रंथों का संस्कृत में अनुवाद करना नहीं है, बल्कि उन्हें भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुरूप पुनर्गठित करना है। इस पहल का नेतृत्व कर रहे भारतीय ज्ञान परंपरा विभाग के राष्ट्रीय समन्वयक डॉ. गटि एस. मूर्ति ने कहा कि यह पश्चिमी दृष्टिकोण से लिखे ज्ञान की भारत की मूल भावना से पुनर्व्याख्या है। “जहां पश्चिम प्रकृति पर विजय की बात करता है, वहीं भारत उसे पूजता है। यही दृष्टि हमें शिक्षा में फिर से स्थापित करनी है,” उन्होंने कहा।
मैकाले शिक्षा पद्धति के प्रभाव को कम करने की पहल
डॉ. मूर्ति ने बताया कि 1835 में लॉर्ड मैकाले द्वारा लागू शिक्षा व्यवस्था ने भारतीय ज्ञान परंपराओं को हाशिये पर डाल दिया था। यह नई पहल उस असंतुलन को ठीक करने की दिशा में पहला निर्णायक कदम है। उन्होंने कहा कि 2045 तक इस अभियान के सकारात्मक परिणाम दिखने लगेंगे और भारतीय शिक्षा प्रणाली को अपनी जड़ों से जोड़ने में यह मिशन मददगार सिद्ध होगा।
विज्ञान, गणित, इतिहास सहित कई विषयों में भारतीय दृष्टिकोण से सामग्री तैयार
इस योजना के अंतर्गत विज्ञान, गणित, दर्शन और इतिहास जैसे विषयों की शिक्षण सामग्री भारतीय दृष्टिकोण से विकसित की जाएगी। अंग्रेजी ग्रंथों की भावना को संस्कृत दर्शन के अनुरूप ढालने का प्रयास किया जाएगा, जिससे विद्यार्थियों को प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय मिल सके।
देशभर से जुटे विद्वान, छात्रों को मिलेगा सीधा लाभ
इस ऐतिहासिक आयोजन में जम्मू, जयपुर, दिल्ली, हिमाचल और अन्य राज्यों से विद्वान प्राध्यापक शामिल हुए। इनमें डॉ. धनंजय मिश्रा, डॉ. राकेश जैन, डॉ. ओमप्रकाश साहनी, डॉ. मनोज्ञा, डॉ. शैलेंद्र प्रसाद उनियाल, डॉ. ब्रह्मानंद मिश्रा और डॉ. रेखा पांडे जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।
सह-निदेशिका प्रो. चंद्रकला आर. कोंडी ने बताया कि यह अभियान न केवल शिक्षा में बदलाव लाएगा, बल्कि रोजगार के नए द्वार भी खोलेगा। परिसर निदेशक प्रो. पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि “पश्चिम ने भारतीय ज्ञान को हमेशा अपने नाम से प्रस्तुत किया। अब समय है कि भारत अपने गौरवशाली अतीत को फिर से सामने लाए।”
विश्वविद्यालय के छात्र भी इस अनुवाद अभियान में सक्रिय भागीदारी करेंगे, जिससे संस्कृत शिक्षा को नया जीवन मिलेगा और भारत की बौद्धिक विरासत को वैश्विक मंच पर नई पहचान मिलेगी।