बांग्लादेश में जारी उथल-पुथल में राजनीतिक विश्लेषकों को अमेरिका और पाकिस्तान का हाथ दिख रहा है। इस छात्र आंदोलन के पीछे कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी को माना जा रहा है, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का करीबी है। दरअसल, लंबे समय से अमेरिका चाह रहा था कि बांग्लादेश में सरकार बदले और एक ऐसी सरकार बने, जो बांग्लादेश के हितों के बजाय अमेरिकी हितों के लिए काम करे। भारत के साथ गहरे आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को बढ़ावा देने वाली शेख हसीना अमेरिका की उन योजनाओं में आड़े आ रही थीं, जिन्हें वह बंगाल की खाड़ी में लागू करना चाहता है। कई पूर्व भारतीय सैन्य और खुफिया अधिकारियों का दावा है कि अमेरिका लंबे समय से हसीना को सत्ता से हटाकर बांग्लादेश को अस्थिर करना चाह रहा था। भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के सेवानिवृत्त एयर मार्शल व चेन्नई स्थित थिंक टैंक द पेनिनसुला फाउंडेशन (टीपीएफ) के प्रमुख एम. माथेस्वरन कहते हैं, प्रधानमंत्री हसीना की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने के लिए छात्र विरोध प्रदर्शनों का फायदा उठाने में स्पष्ट रूप से अमेरिका का हाथ प्रतीत होता है। छात्र आसानी से प्रभावित होने वाला समूह है और दुख की बात है कि इस मामले में वे हसीना को हटाने के आह्वान में पश्चिमी प्रभाव के आगे झुक गए। एयर मार्शल माथेस्वरन कहते हैं, अमेरिका को अपने स्वार्थी हितों के लिए किसी भी देश को अस्थिर करने में कोई हिचक नहीं है। रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व अधिकारी कर्नल आरएसएन सिंह कहते हैं, हसीना का सत्ता से बाहर होना भारतीय हितों के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकता है। 2000 के दशक में जब बीएनपी-जमात सत्ता में थे, भारत के पूर्वोत्तर में उग्रवाद को जमकर बढ़ावा दिया गया। अमेरिका लंबे समय से बंगाल की खाड़ी में मौजूदगी की कोशिश कर रहा था, जो वैश्विक व्यापार के लिए रणनीतिक रूप से अहम मार्ग है। मई में हसीना ने कहा था कि एक विदेशी ताकत (अमेरिका) सेंट मार्टिन द्वीप पर सैन्य अड्डा बनाने की मांग कर रही है, ताकि चीन के मुकाबले में अपनी स्थिति मजबूत कर सके और म्यांमार की स्थिति को प्रभावित कर सके, जो दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार है।