वॉशिंगटन।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रोजगार बढ़ाने के वादे धरातल पर कमजोर पड़ते दिखाई दे रहे हैं। सरकारी आंकड़ों और आर्थिक विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार, हाल के महीनों में नियुक्तियों की रफ्तार लगभग ठप हो गई है। इसके साथ ही ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए आयात शुल्क (टैरिफ) का असर अब महंगाई के रूप में सामने आ रहा है। उपभोक्ताओं को रोजमर्रा की वस्तुओं से लेकर तकनीकी उपकरणों तक की कीमतें बढ़ी हुई चुकानी पड़ रही हैं।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान लाखों नई नौकरियां पैदा करने और अमेरिकी उद्योग को नई ताकत देने का वादा किया था। लेकिन टैरिफ नीति ने उल्टा असर डाला। चीन और अन्य देशों से आने वाले आयातित सामान पर अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने से उत्पादन लागत बढ़ी, जिसकी मार सीधे उपभोक्ताओं और रोजगार बाजार पर पड़ी।
रिपोर्टों के मुताबिक, कंपनियां बढ़ती लागत के कारण नई भर्तियां करने से बच रही हैं। कई उद्योगों ने तो विस्तार योजनाओं को रोक दिया है। खासकर विनिर्माण और खुदरा क्षेत्र पर दबाव बढ़ा है। वहीं, मुद्रास्फीति दर लगातार ऊंची बनी हुई है, जिससे आम अमेरिकी परिवारों का बजट बिगड़ गया है।
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर स्थिति जल्द नहीं सुधरी तो ट्रंप प्रशासन के लिए यह चुनावी मुद्दा बन सकता है। रोजगार और महंगाई जैसे विषय हमेशा से अमेरिकी मतदाताओं को प्रभावित करते रहे हैं। विपक्ष पहले ही इसे लेकर हमलावर हो चुका है और ट्रंप पर “आर्थिक नीतियों की विफलता” का आरोप लगा रहा है।
वित्तीय विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि ट्रंप की टैरिफ रणनीति से अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और गहरा हुआ है। इसका असर न केवल अमेरिकी बाजार पर बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी दिखाई दे रहा है।
फिलहाल, सवाल यह है कि ट्रंप प्रशासन इस आर्थिक दबाव से निपटने के लिए क्या कदम उठाएगा। लेकिन अभी तक संकेत यही हैं कि रोजगार और मुद्रास्फीति की समस्या फिलहाल बनी रहेगी।