राजस्थान के झालावाड़ में स्कूल की दीवार गिरने से सात मासूम बच्चों की मौत के मामले पर राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इसे ‘दिल दहलाने वाली घटना’ बताया है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार दोनों से इस पर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। जस्टिस अनूप आनंद की एकल पीठ ने इस मुद्दे पर सख्त टिप्पणी करते हुए राज्य में स्कूली इन्फ्रास्ट्रक्चर की जर्जर हालत पर गहरी नाराजगी जाहिर की।
हाईकोर्ट का सवाल – बजट देने के बावजूद क्यों जर्जर हैं स्कूल?
कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार अपने कुल बजट का 6% हिस्सा शिक्षा क्षेत्र के लिए खर्च करती है, इसके बावजूद स्कूलों की हालत चिंताजनक है। यह दर्शाता है कि बजट का प्रभावी उपयोग नहीं हो रहा है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि ऐसी स्थिति बच्चों के जीवन के साथ सीधा खिलवाड़ है।
सर्वे और आंकड़ों से खुली पोल
हाईकोर्ट ने हाल के एक सर्वे का हवाला देते हुए बताया कि देश के 12 राज्यों की 22% स्कूल इमारतें जर्जर अवस्था में हैं। अकेले राजस्थान में:
- 32% स्कूलों में बिजली की सुविधा नहीं,
- 9% स्कूलों में पीने के पानी का अभाव,
- 9% स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय नहीं हैं।
5 प्वाइंट निर्देश: जवाबदेही तय करने की पहल
हाईकोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए केंद्र और राज्य सरकार को 5 ठोस निर्देश दिए हैं:
- सभी स्कूल भवनों का व्यापक सर्वेक्षण कराया जाए।
- एक ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जाए, जहां माता-पिता और छात्र स्कूलों की तस्वीरें और वीडियो अपलोड कर सकें।
- सरकारी ही नहीं, निजी स्कूलों को भी इस अभियान में शामिल किया जाए।
- शिकायतों के समाधान के लिए एक जवाबदेह प्रणाली विकसित की जाए।
- स्कूलों के पुनर्निर्माण में जिम्मेदारी तय हो, और भविष्य में हादसा होने पर ठेकेदार से पूरा खर्च वसूला जाए।
राजनीतिक प्रतिक्रिया भी तेज
झालावाड़ हादसे में 7 बच्चों की मौत के बाद विपक्षी दलों ने संसद में इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया है। विपक्ष ने दोषियों पर कड़ी कार्रवाई और पूरे राज्य में स्कूलों की इमारतों की जांच की मांग की है।