जीपीटी-4 जैसे एआई टूल मरीजों से बातचीत में फेल
आजकल चैटबॉट्स का इस्तेमाल लोग अपने लक्षणों या टेस्ट रिपोर्ट्स को समझने के लिए करते हैं, लेकिन हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूएस के शोधकर्ताओं के नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में देखा गया है कि जीपीटी-4 जैसे एआई टूल्स असल जिंदगी में मरीजों से बातचीत में उतने असरदार नहीं हैं। हालांकि, एआई चैटबॉट्स जैसे ये टूल मेडिकल परीक्षा जैसे फॉर्मेट में सवालों के जवाब देने में अच्छे हैं, लेकिन मरीजों के साथ बातचीत के दौरान इन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।इसका मतलब है कि असल जिंदगी की बातचीत में, जैसे लक्षणों या टेस्ट रिपोर्ट्स के बारे में चर्चा करना वे उतने अच्छे नहीं हैं। भले ही उनके पास मेडिकल जानकारी हो, लेकिन वे एक असली डॉक्टर की तरह स्वाभाविक और व्यक्तिगत रूप से बात करने में कभी-कभी कमजोर पड़ जाते हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चैटजीपीटी जैसे एआई टूल्स चैटबॉट को संचालित करने वाले बड़े-भाषा मॉडल (एलएलएम) के बीमारियों से जुड़ी व्यवस्थाओं में इनका इस्तेमाल करने से पहले मूल्यांकन के लिए सलाह भी दी है। एलएलएम को विशाल टेक्स्ट डाटासेट पर प्रशिक्षित किया जाता है और इस तरह से ये उपयोगकर्ता के अनुरोधों का प्राकृतिक भाषा में जवाब दे सकते हैं। शोधकर्ताओं ने क्राफ्ट- एमडी नाम का तरीका अपनाकर जांचा कि जीपीटी-4 और मिस्ट्रल जैसे एआई टूल्स मेडिकल बातचीत में कितना अच्छा प्रदर्शन करते हैं। इस तरीके से एआई के लक्षण, दवाइयां और पारिवारिक इतिहास जैसी जानकारी इकट्ठा करने और सही निदान देने की क्षमता का परीक्षण किया गया।शोधकर्ताओं ने असल जिंदगी की स्थितियों को लेकर एआई टूल्स को परखा। इसके लिए एआई को 2,000 सामान्य बीमारियों और 12 मेडिकल विशेषज्ञताओं के उदाहरण दिए गए। इसमें एआई को मरीज की भूमिका में रखकर सवालों का जवाब देना था। इस दौरान एक अन्य एआई इन एआई टूल्स के दिए निदानों को ग्रेड दिया। इसके बाद इंसानी विशेषज्ञों ने जांचा कि एआई ने कितनी सटीक जानकारी इकट्ठा की, कितना सही निदान किया और निर्देशों का कितना पालन किया।