बिहार में विशेष मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम (SIR) को लेकर सियासत गरमा गई है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने चेतावनी दी है कि यदि चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया में बदलाव नहीं किया, तो महागठबंधन चुनाव बहिष्कार का निर्णय ले सकता है। उनके इस बयान ने सियासी तापमान और बढ़ा दिया है। यदि सच में विपक्षी महागठबंधन चुनाव से दूरी बनाता है, तो यह न सिर्फ चुनाव आयोग बल्कि केंद्र सरकार की साख पर भी सवाल खड़े कर सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी और राहुल गांधी एक सोची-समझी रणनीति पर काम कर रहे हैं — जैसा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में संविधान बदलने की आशंका को मुद्दा बनाया गया था। अब वे मतदाताओं में वोट कटने या खोने का डर पैदा कर राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं। यदि राज्य के सिर्फ 1% मतदाता भी इससे प्रभावित हुए, तो चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।
अब तक क्या हुआ?
- चुनाव आयोग ने दावा किया है कि 99% से अधिक मतदाताओं तक पहुंच बनाया गया है।
- पुनरीक्षण के दौरान 6 लाख मृत मतदाताओं और 31.5 लाख अन्यत्र स्थायी रूप से बसे लोगों के नाम चिह्नित किए गए हैं।
- आयोग के अनुसार, करीब 61 लाख नामों को मतदाता सूची से हटाया जा सकता है।
वहीं, विपक्षी दलों का आरोप है कि सत्तारूढ़ दल जानबूझकर हर विधानसभा क्षेत्र से 20-25 हजार वोट कटवाने की साजिश कर रहा है, जिससे चुनावी नतीजों को प्रभावित किया जा सके।
विपक्ष का विरोध और बहिष्कार की चेतावनी
राजद के मुख्य प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि यदि चुनाव आयोग कार्रवाई में बदलाव नहीं लाता है, तो चुनाव बहिष्कार पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। कांग्रेस नेता शाश्वत केदार पांडेय ने भी कहा कि यदि चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकते, तो एकतरफा चुनाव का कोई अर्थ नहीं है।
उन्होंने महाराष्ट्र और हरियाणा के उदाहरण देते हुए कहा कि मतगणना के बाद मतदाता संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि धांधली का संकेत है। उनके अनुसार, बिहार में पिछली बार महागठबंधन का प्रदर्शन मजबूत था और इस बार जनता में आक्रोश को देखते हुए वह जीत की ओर अग्रसर है।
विश्लेषकों की राय – ‘दबाव की रणनीति’
राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र कुमार का मानना है कि चुनाव बहिष्कार की बात असल में सत्ता पक्ष और चुनाव आयोग पर दबाव बनाने की रणनीति है। भारत में बहुदलीय व्यवस्था के चलते किसी एक दल के चुनाव से हटने का असर सीमित ही रहता है। उन्होंने कहा कि यदि राजद चुनाव न लड़े तो सहयोगी दलों या छोटे दलों — जैसे वीआईपी या बसपा — के लिए अवसर बन जाएगा।
धीरेंद्र ने यह भी कहा कि विपक्ष इस बार उसी रणनीति पर काम कर रहा है, जैसा 2024 में संविधान परिवर्तन के मुद्दे पर किया गया था। वोट कटने के डर के जरिए विपक्ष मतदाताओं में भावनात्मक जुड़ाव बनाना चाहता है।
भाजपा का पलटवार – ‘सिर्फ राजनीतिक स्टंट’
भाजपा प्रवक्ता अनिरुद्ध प्रताप सिंह ने विपक्ष के विरोध को राजनीतिक स्टंट करार देते हुए कहा कि चुनाव आयोग ने केवल मृत, दोहरी प्रविष्टियों वाले या अन्यत्र स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम हटाने की बात की है। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी दल हार के डर से बहाने तलाश रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि मतदाता सूची अपडेट में कांग्रेस, राजद और वाम दलों के कार्यकर्ता भी शामिल हैं, लेकिन अब तक किसी ने कोई अनियमितता की शिकायत नहीं की। ऐसे में नेताओं द्वारा बिना प्रमाण के विरोध सिर्फ सनसनी फैलाने का प्रयास है।