विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि चीन के साथ रिश्तों को सामान्य होने, स्वाभाविक विश्वास कायम होने और साथ मिलकर काम करने की इच्छा फिर से स्थापित करने में अभी वक्त लगेगा। जयशंकर ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त के लिए चीन के साथ हुए सफल समझौते का श्रेय सेना को दिया। उन्होंने कहा कि सेना ने बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में काम किया और कुशल कूटनीति का परिचय दिया।पुणे के एक विश्वविद्यालय में छात्रों के साथ संवाद सत्र में जयशंकर ने कहा, आज हम जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, इसका एक कारण है कि हम अपनी जमीन पर डटे रहे और अपनी बात रखने के लिए बहुत दृढ़ प्रयास किए। सेना देश की रक्षा के लिए बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में (एलएसी पर) मौजूद थी। सेना ने अपना काम किया और कूटनीति ने अपना काम किया। एक दशक में भारत ने अपने बुनियादी ढांचे में सुधार किया है। समस्या का एक हिस्सा यह है कि पहले के वर्षों में सीमा पर बुनियादी ढांचे की वास्तव में उपेक्षा की गई थी। जयशंकर ने कहा, आज हम एक दशक पहले की तुलना में सालाना पांच गुना अधिक संसाधन लगा रहे हैं। इसके परिणाम भी दिख रहे हैं और सेना को वास्तव में प्रभावी ढंग से तैनात करने में सक्षम बना रहे हैं। इन (कारकों) के संयोजन ने हमें यहां तक पहुंचाया है।विदेश मंत्री ने कहा कि सीमा पर चीन के साथ तनाव का समाधान तीन अलग अलग पहुलओं से होना है। पहला और सबसे जरूरी पहलू है सैनिकों का पीछे हटना। क्योंकि सैनिक एक-दूसरे के बहुत करीब हैं और कुछ होने की संभावना है। दूसरे नंबर पर दोनों तरफ से सैनिकों की संख्या बढ़ने के कारण तनाव कम करना है।
- इसके बाद एक बड़ा मुद्दा यह है कि आप सीमा का प्रबंधन कैसे करते हैं और सीमा समझौते पर बातचीत कैसे करते हैं। जयशंकर ने कहा कि अभी जो कुछ भी हो रहा है वह पहले हिस्से से संबंधित है।
एलएसी पर गश्त्त समझौते का अर्थ सबकुछ ठीक होना नहीं
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त को लेकर हुए समझौते का यह अर्थ कतई नहीं है कि दोनों देशों के बीच सभी मसलों का समाधान हो गया है। विदेश मंत्री ने कहा कि इतना जरूर हुआ है कि सेनाओं के उस क्षेत्र से हटने से हमें अगला कदम उठाने का अवसर मिला है। सेना की वापसी महज पहला चरण है, जो हम इस स्तर पर पहुंचने में सफल रहे हैं।
जयशंकर ने कहा, वैश्विक दक्षिण के देशों को भारत से बहुत अधिक भरोसा और अपेक्षाएं हैं। वैश्विक दक्षिण से हमारा मतलब उन देशों से है जो उपनिवेश थे, जिन्हें अपनी स्वतंत्रता मिली या जो अभी भी विकासशील हैं। तीन उदाहरण देते हुए जयशंकर ने याद किया कि नई दिल्ली ने कई देशों को कोविड-19 के टीके उस समय दिए थे, जब भारत अपने लोगों को टीका लगा रहा था। मैं दुनिया पर इसके भावनात्मक प्रभाव को कम करके नहीं आंक सकता। दूसरा उदाहरण यूक्रेन और तीसरा हमारी अध्यक्षता में हुआ जी-20 शिखर सम्मेलन है। अफ्रीकी संघ कई वर्षों से जी-20 में एक सीट चाहता था। हर जी-20 इसी तरह से शुरू होता था, जी-20 के पहले दिन, हर कोई अफ्रीकी संघ से कहता था कि चिंता मत करो, इस बैठक के दौरान और हम तुम्हारा ख्याल रखेंगे लेकिन बैठक के अंत में जब कुछ नहीं हुआ, तो वे कहते हैं, क्षमा करें इस बार हम ऐसा नहीं कर सके। हमने इस मुद्दे को उठाया और इसे इस तरह आगे बढ़ाया कि हर किसी को इसे स्वीकार करना पड़ा। अफ्रीकी देश सोचते हैं कि भारत के पास विवेक है। भारत के पास प्रतिष्ठा है, भारत के पास आत्मविश्वास है।