Thursday, November 13, 2025

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क्या बिहार चुनाव में ‘एक्स फैक्टर’ साबित होंगी मायावती? दलित वोटों में सेंध लगने से बदल सकते हैं समीकरण

पटना।
बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल अब पूरी तरह गरमा चुका है। इस बार पारंपरिक राजनीतिक दलों के बीच मुकाबले के साथ एक नया समीकरण भी बनता दिख रहा है—बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और उसकी मुखिया मायावती का। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि मायावती दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रहती हैं, तो बिहार का चुनावी गणित पूरी तरह बदल सकता है।

मायावती की पार्टी बसपा भले ही बिहार में बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं मानी जाती, लेकिन दलित समुदाय, खासकर पासवान और मुसहर जातियों के बीच उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ी है। बसपा ने इस बार प्रदेश में अपने उम्मीदवारों को कई सीटों पर उतारकर यह संकेत दे दिया है कि वह चुनावी मैदान में केवल उपस्थिति दर्ज कराने नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाने की मंशा रखती है।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, बिहार की लगभग 50 से अधिक विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां दलित मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इन इलाकों में यदि बसपा थोड़े भी वोट हासिल करने में कामयाब होती है, तो इसका सीधा असर राजद, जदयू और भाजपा जैसे प्रमुख दलों के समीकरणों पर पड़ सकता है।

कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मायावती की रणनीति इस बार किंगमेकर’ की भूमिका निभाने की हो सकती है। वे दलितों के साथ-साथ अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही हैं। बसपा ने अब तक जिन उम्मीदवारों की घोषणा की है, उनमें विभिन्न सामाजिक वर्गों का संतुलन साफ दिखाई दे रहा है।

दलित राजनीति के जानकार प्रोफेसर अजय कुमार का कहना है, “बिहार में मायावती का वोट शेयर भले कम रहा हो, लेकिन उनकी मौजूदगी कई सीटों पर कटिंग फैक्टर साबित हो सकती है। यदि उन्होंने दलित वोटों का 5 से 7 प्रतिशत हिस्सा भी खींच लिया, तो प्रमुख गठबंधनों की स्थिति बदल सकती है।”

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि बसपा इस बार उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बिहार में भी तीसरा विकल्प बनने की कोशिश कर रही है। मायावती ने अपने हालिया भाषणों में बिहार के विकास, दलित सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय को मुख्य मुद्दा बनाया है।

वहीं, अन्य दलों में बसपा की सक्रियता को लेकर सतर्कता बढ़ गई है। राजद और जदयू दोनों ही अपने-अपने दलित वोट बैंक को मजबूत बनाए रखने में जुटे हैं। भाजपा भी पसमांदा और महादलित वर्गों के बीच विशेष पहुंच बनाने की रणनीति पर काम कर रही है।

अब देखना यह होगा कि क्या मायावती इस चुनाव में वास्तव में ‘एक्स फैक्टर’ साबित होती हैं या नहीं। लेकिन इतना तय है कि उनकी मौजूदगी ने बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में नई हलचल जरूर पैदा कर दी है — और यदि दलित मतदाताओं का झुकाव थोड़ा भी बदला, तो बिहार के सत्ता समीकरणों की दिशा पूरी तरह बदल सकती है।

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