तेलंगाना राज्य के निर्माण के आंदोलन से खड़ी होकर 10 साल तक राज्य में सत्ता चलाने वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब बीआरएस) का झंडा बेशक गुलाबी है…लेकिन पार्टी के लिए चुनावी मौसम लपटों से भरा है। यूं तो पांच महीने पहले नवंबर-23 में सत्ता से बेदखल हुई बीआरएस ही तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 9 पर काबिज है। लेकिन अहम सवाल है कि ये अब बचंेगी भी या नहीं। सवाल इसलिए भी क्योंकि बीआरएस के चार मौजूदा सांसदों समेत कई विधायक और पूर्व विधायक पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। बीआरएस के राज की तारीफ करते लोग तपाक से जोड़ते भी हैं कि उन्होंने पैसा खूब बनाया है। यह वोट बैंक खिसकने का संकेत है। यह किसकी झोली भरेगा…कांग्रेस, भाजपा या फिर कुछ-कुछ दोनों की…होड़ इसी की है। तेलंगाना में चुनाव कैसा चल रहा है… इसका पहला रुझान मिलता है, एयरपोर्ट से हाईटेक सिटी की ओर फर्राटा भरते हुए 26 साल के टैक्सी ड्राइवर सैयद अरबाज के जवाब से। बगैर लाग-लपेट के वह कहते हैं, बीआरएस तो डूब ही गई…। इसकी पुष्टि विधानसभा चुनाव के नतीजे भी करते हैं, जिसमें बीआरएस को सत्ता से ही बाहर नहीं होना पड़ा, बल्कि 10 फीसदी वोट भी गंवाने पड़े। राज्य में कांग्रेस सशक्त होकर उभरी और सिर्फ दो फीसदी ज्यादा मत हासिल करके राज छीना और बीआरएस में भगदड़ भी मचा दी। 27 अप्रैल को 23 बरस की हुई बीआरएस के लिए लोकसभा का यह चुनाव अस्तित्व से जुड़ा है। पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ही हैं। वह 17 दिन…17 लोकसभा सीट…का संकल्प लेकर महबूबनगर से तूफानी चुनावी अभियान शुरू कर चुके हैं। वहीं, महबूबनगर, जहां से 2009 में सांसद रहते हुए आंध्र प्रदेश से अलग तेलंगाना राज्य की मांग के लिए केसीआर ने आमरण अनशन शुरू कर 11 दिन बाद ही केंद्र की यूपीए सरकार को झुकने के लिए विवश कर दिया था। केसीआर ने चुनावी बस यात्रा के पहले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा निशाने पर लिया। योजनाओं का मखौल उड़ाया। नारा भी बदला…सबका साथ-सबका विकास…सबका सत्यानाश…।