Wednesday, February 5, 2025

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एक देश-एक चुनाव पर अब होगा मंथन

एक देश-एक चुनाव विधेयक लोकसभा में पेश करने और मंथन के लिए जेपीसी को भेजे जाने के बीच सरकार ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि आखिर यह व्यवस्था अपनाने की जरूरत क्यों पड़ रही। सरकार का कहना है कि एक साथ चुनाव कराना कोई नई अवधारणा नहीं है। देश में पहले यही व्यवस्था थी। यही नहीं, इसको लागू करने से देश के विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ने की पूरी संभावना है।सरकार ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से सरकार का ध्यान विकासात्मक गतिविधियों और जनता के कल्याण को बढ़ावा देने वाली नीतियों को लागू करने पर केंद्रित होगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति के निष्कर्षों का हवाला देते हुए बयान में कहा गया कि देश के विभिन्न हिस्सों में समय-समय पर चुनावी चक्र में उलझे होने के कारण राजनीतिक दल, उनके नेता, विधायक और राज्य और केंद्र सरकारें अक्सर शासन संबंधी कार्यों को प्राथमिकता देने में चूक जाते हैं। उनका सारा ध्यान अगले चुनाव की तैयारियों पर केंद्रित हो जाता है।एक साथ चुनाव कराने से शासन में निरंतरता को बढ़ावा मिलता है। सरकार इसे विकास गतिविधियों में तेजी लाने के उद्देश्य से बेहद अहम मान रही है। इसमें यह भी कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव 1951-52 में एक साथ कराए गए थे। यह परंपरा 1957, 1962 और 1967 में भी जारी रही। कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण 1968 और 1969 में यह चक्र बाधित हो गया। चौथी लोकसभा भी 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई थी, जिसके बाद 1971 में नए चुनाव हुए।पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल आपातकाल की घोषणा के कारण अनुच्छेद 352 के तहत 1977 तक बढ़ा दिया गया था। तबसे स्थिति कुछ ज्यादा ही बिगड़ी और केवल कुछ ही लोकसभाएं पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाईं जिसमें आठवीं, 10वीं, 14वीं और 15वीं लोकसभा शामिल हैं। छठी, सातवीं, नौवीं, 11वीं, 12वीं और 13वीं लोकसभा को समय से पहले भंग किया गया। पिछले कुछ वर्षों में राज्य विधानसभाओं में भी इसी तरह के व्यवधान सामने आए हैं।

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