Saturday, July 26, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

उत्तराखंड में सोलर प्रोजेक्ट लगाने वाली 12 फर्मों को झटका, नियामक आयोग ने आवंटन रद्द कर पुनर्विचार याचिका भी की खारिज

उत्तराखंड की 12 सोलर ऊर्जा कंपनियों को बड़ा झटका लगा है। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग ने इन फर्मों के परियोजना आवंटन को रद्द करने के पहले के फैसले पर पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी है। ये सभी कंपनियां सौर ऊर्जा नीति 2013 के तहत वर्ष 2019-20 में आवंटित परियोजनाएं समय पर पूरी नहीं कर पाईं।

कोविड में मिला समय, फिर भी निर्माण अधूरा

इन फर्मों को उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा अभिकरण (UREDA) ने निविदा के माध्यम से सोलर प्रोजेक्ट आवंटित किए थे, जिन्हें एक साल में पूरा किया जाना था। कोविड के कारण निर्माण में देरी हुई तो समयसीमा बढ़ाकर पहले 31 मार्च 2024 और फिर 31 दिसंबर 2024 कर दी गई। लेकिन नियामक आयोग को इस विस्तार का ठोस आधार नहीं बताया जा सका।

जब फर्मों ने एक और विस्तार की मांग की, तो मामला नियामक आयोग तक पहुंचा। आयोग ने प्रगति रिपोर्ट मंगाई, जिसमें गंभीर खामियां उजागर हुईं।

रिपोर्ट में खुली पोल

  • दो कंपनियों ने एक ही बैंक खाता दिया।
  • दो कंपनियों ने एक ही जमीन को अलग-अलग लोकेशन बताकर गूगल मैपिंग पेश की।
  • अधिकतर फर्मों ने अब तक न पूरी जमीन जुटाई, न ही फंडिंग का इंतज़ाम किया।

इस पर आयोग ने 27 मार्च 2024 को स्वत: संज्ञान लेते हुए सभी आवंटन रद्द कर दिए थे।

पुनर्विचार याचिका भी खारिज

फर्मों ने संयुक्त रूप से पुनर्विचार याचिका दायर की, लेकिन आयोग के अध्यक्ष एमएल प्रसाद और सदस्य अनुराग शर्मा की पीठ ने इसे भी खारिज कर दिया। पीठ ने माना कि कोई भी फर्म कोई नया तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाई और UREDA व UPCL के जवाब भी संतोषजनक नहीं थे।

किन कंपनियों को लगा झटका?

  • पीपीएम सोलर एनर्जी
  • एआर सन टेक
  • पशुपति सोलर एनर्जी
  • दून वैली सोलर पावर
  • मदन सिंह जीना
  • दारदौर टेक्नोलॉजी
  • एसआरए सोलर एनर्जी
  • प्रिस्की टेक्नोलॉजी
  • हर्षित सोलर एनर्जी
  • जीसीएस सोलर एनर्जी
  • देवेंद्र एंड संस एनर्जी
  • डेलीहंट एनर्जी

2500 मेगावाट लक्ष्य को आंशिक नुकसान

नई सौर ऊर्जा नीति 2023 के तहत राज्य को दिसंबर 2027 तक 2500 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य दिया गया है। इन 12 परियोजनाओं के रद्द होने से करीब 15.5 मेगावाट क्षमता का नुकसान तो हुआ है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इतनी देर से शुरू होने पर परियोजनाएं UPCL को पुराने दरों पर बिजली बेचतीं, जो आर्थिक रूप से घाटे का सौदा होता।

Popular Articles