उत्तराखंड में पीड़ितों को जल्द न्याय मिल सके इसके लिए राज्य सरकार ने तीन फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। उच्च न्यायालय के निर्देशों पर सोमवार को जारी अधिसूचना में कहा गया कि ये कोर्ट बलात्कार, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और अन्य गंभीर अपराधों के मामलों का तेजी से निपटारा करेंगे। इस कदम से लंबित मुकदमों की संख्या में कमी आएगी तथा पीड़ितों को वर्षों इंतजार न करना पड़ेगा।
फास्ट ट्रैक कोर्ट देहरादून, हरिद्वार और नैनीताल में स्थापित होंगे, जहां विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। न्यायालयों में अनुभवी जजों की नियुक्ति की जाएगी, जो प्रति माह कम से कम 20-25 मामलों का निपटारा करेंगे। राज्य सरकार ने इसके लिए बजट आवंटित कर दिया है तथा डिजिटल केस मैनेजमेंट सिस्टम लागू करने का निर्णय लिया है। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार ने बताया कि पहला कोर्ट जनवरी 2026 से कार्यरत हो जाएगा।
यह निर्णय उन हजारों पीड़ितों के लिए वरदान साबित होगा, जो पारंपरिक अदालतों में वर्षों तक न्याय के लिए भटकते हैं। हाल ही में आई एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में यौन अपराधों के 40 प्रतिशत से अधिक मामले लंबित हैं। फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रक्रिया कोर्ट में 6 महीने के अंदर फैसला सुनाने पर जोर देंगे तथा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पहल को महिलाओं की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता बताते हुए कहा कि न्याय में देरी अन्याय है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार की फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट योजना के तहत यह कदम उठाया है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर 700 से अधिक कोर्ट कार्यरत हैं। स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे ताकि पीड़ित बिना डर के शिकायत दर्ज करा सकें। वकीलों और एनजीओ ने इस निर्णय का स्वागत किया है तथा इसे न्यायिक सुधार की दिशा में बड़ा कदम बताया है।





