Wednesday, September 10, 2025

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उत्तराखंड: पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की संयुक्त मार से बढ़ी बारिश, चुनौती को देखते हुए जरूरी है मजबूत तैयारी

देहरादून। उत्तराखंड में इस बार बारिश सामान्य से कहीं अधिक और तेज दर्ज की गई है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका मुख्य कारण पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) और दक्षिण-पश्चिम मानसून (Monsoon) का एक साथ सक्रिय होना रहा। इन दोनों मौसमी प्रणालियों के टकराव से प्रदेश के कई जिलों में भारी वर्षा हुई, जिसने पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों में स्थिति को चुनौतीपूर्ण बना दिया।

सामान्य से ज्यादा बरसात

मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई और अगस्त में औसत से अधिक वर्षा दर्ज की गई। कई इलाकों में 24 घंटे के भीतर हुई बारिश ने पिछले वर्षों के आंकड़े भी पीछे छोड़ दिए। पहाड़ों में लगातार हो रही तेज बारिश के कारण भूस्खलन की घटनाएं बढ़ीं, जबकि मैदानी इलाकों में जलभराव और नदियों का जलस्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया।

पश्चिमी विक्षोभ की भूमिका

विशेषज्ञों का मानना है कि सामान्य परिस्थितियों में पश्चिमी विक्षोभ सर्दियों में सक्रिय होता है, लेकिन इस बार इसका प्रभाव मानसून सीजन में भी देखने को मिला। पश्चिमी विक्षोभ के चलते ऊपरी हवा के दबाव तंत्र में बदलाव आया और मानसून की नमी से मिलकर यह और भी घातक साबित हुआ। नतीजतन, स्थानीय स्तर पर अत्यधिक बारिश और अचानक बाढ़ जैसी स्थितियां पैदा हुईं।

बढ़ती प्राकृतिक चुनौतियां

भारी वर्षा ने उत्तराखंड की नाजुक भू-आकृतिक परिस्थितियों को और जटिल बना दिया है। लगातार भूस्खलन से सड़कों का संपर्क टूटता जा रहा है, जिससे चारधाम यात्रा और अन्य धार्मिक स्थलों तक पहुंचना कठिन हो गया है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की फसलें भी प्रभावित हुई हैं।

तैयारी की जरूरत

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भविष्य में भी मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के एक साथ सक्रिय होने की घटनाएं बढ़ सकती हैं। ऐसे में प्रशासन को पहले से ही आपदा प्रबंधन, राहत और बचाव कार्यों की मजबूत रणनीति तैयार करनी होगी। संवेदनशील इलाकों में अर्ली वार्निंग सिस्टम को दुरुस्त करने, आपदा प्रभावित गांवों में राहत सामग्री का भंडारण करने और वैकल्पिक सड़क मार्ग तैयार रखने की सलाह दी गई है।

स्थानीय लोगों की अपील

पहाड़ी जिलों के लोग प्रशासन से लगातार यह मांग कर रहे हैं कि बरसात से पहले ही जोखिम वाले इलाकों की पहचान कर वहां से अस्थायी पलायन की व्यवस्था की जाए। साथ ही छोटे पुलों, सड़कों और नालों की मरम्मत समय पर की जाए, ताकि अचानक बारिश के दौरान जन-धन का नुकसान न हो।

निष्कर्षत: पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की संयुक्त सक्रियता ने उत्तराखंड में इस साल बारिश को सामान्य से कहीं अधिक घातक बना दिया। बदलते मौसमी पैटर्न को देखते हुए राज्य को अब पारंपरिक उपायों से आगे बढ़कर दीर्घकालिक आपदा प्रबंधन रणनीति अपनानी होगी।

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