Thursday, December 18, 2025

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उत्तराखंड के पहाड़ों में 21 दिसंबर से शुरू होगी होली की धूम, घर-घर गूंजेंगे गीत

देहरादून/अल्मोड़ा। देवभूमि उत्तराखंड की अनूठी परंपरा ‘बैठकी होली’ का आगाज इस वर्ष 21 दिसंबर से होने जा रहा है। पौष मास के प्रथम रविवार से शुरू होने वाली यह शास्त्रीय संगीत आधारित होली पहाड़ों की सांस्कृतिक पहचान है, जिसकी गूंज अब घरों और बैठकों में सुनाई देगी।

बैठकी होली का विशेष महत्व

  • शास्त्रीय गायन की परंपरा: उत्तराखंड, विशेषकर कुमाऊं क्षेत्र में होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि सुरों का संगम है। 21 दिसंबर से शुरू होने वाली इस होली में राग-रागिनियों पर आधारित बैठकों का आयोजन होता है, जो वसंत पंचमी तक चलती हैं।
  • पौष माह से शुरुआत: मान्यताओं के अनुसार, पौष महीने के पहले रविवार से होली के गीतों का विधिवत गायन शुरू हो जाता है। इसमें ‘धमार’, ‘दादरा’ और ‘ठुमरी’ जैसी विधाओं में होली के गीत गाए जाते हैं।
  • सांप्रदायिक सद्भाव और सामूहिकता: इस दौरान गांव-मोहल्लों में लोग एक स्थान पर एकत्र होते हैं। हारमोनियम और तबले की थाप पर पारंपरिक होली गीतों के जरिए लोग अपनी लोक संस्कृति को अगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं।

खड़ी होली और महिला होली का उत्साह

बैठकी होली के बाद जैसे-जैसे समय बीतता है, इसमें ‘खड़ी होली’ और ‘महिला होली’ का रंग भी जुड़ने लगता है। गांव के चौपालों में सफेद कुर्ता-पायजामा और टोपी पहने पुरुष टोली बनाकर झूमते हुए होली गाते हैं, जिसे ‘खड़ी होली’ कहा जाता है। वहीं, महिलाएं भी अपने-अपने समूहों में ढोलक और मंजीरों के साथ इस उत्सव को खास बनाती हैं।

विरासत को बचाने की मुहिम

पलायन के दौर में भी पहाड़ों में रहने वाले बुजुर्गों ने इस परंपरा को जीवित रखा है। स्थानीय सांस्कृतिक संगठनों का कहना है कि 21 दिसंबर से शुरू होने वाला यह उत्सव प्रवासी उत्तराखंडियों को भी अपनी जड़ों की ओर खींचने का एक बड़ा माध्यम बनता है।

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