नई दिल्ली/वॉशिंगटन। अमेरिका में हाल ही में लागू हुई नई आव्रजन नीतियों के तहत वीजा को राजनीतिक और रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा असर भारतीय आईटी पेशेवरों और टेक कंपनियों पर पड़ा है। अमेरिका में H-1B वीजा और अन्य पेशेवर वीजा धारकों की संख्या सीमित करने के फैसलों ने अमेरिकी कंपनियों को गंभीर परेशानियों में डाल दिया है।
सूत्रों के अनुसार, भारतीय आईटी पेशेवर अमेरिकी कंपनियों के लिए लंबे समय से अत्यंत जरूरी रहे हैं। ये तकनीकी विशेषज्ञ न केवल बड़ी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने में मदद करते हैं, बल्कि नवाचार और प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। अब वीजा पर रोक और नियमों की जटिलता के कारण कंपनियां कर्मचारियों की कमी और परियोजनाओं की देरी जैसी चुनौतियों का सामना कर रही हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका की नई नीति से भारतीय आईटी पेशेवरों की उपलब्धता पर सीधा असर पड़ा है। कंपनियों को अब न केवल कुशल तकनीकी कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि उन्हें बढ़ती लागत और अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं के समयबद्ध क्रियान्वयन में भी दिक्कत हो रही है।
आईटी कंपनियों ने चेतावनी दी है कि अगर वीजा नीति में नरमी नहीं लाई गई, तो अमेरिका में कई टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट प्रभावित होंगे और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कंपनियों की स्थिति कमजोर हो सकती है। इसके अलावा, भारतीय पेशेवरों की भारी मांग को देखते हुए कंपनियां अन्य देशों के विकल्प तलाशने पर मजबूर हो सकती हैं।
कांग्रेस और उद्योग संघों ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है और कहा है कि व्यापारिक हितों और कुशल मानव संसाधन की जरूरत के बीच संतुलन बनाए बिना यह नीति अमेरिकी टेक उद्योग के लिए गंभीर चुनौतियों को जन्म दे सकती है।





