नई दिल्ली। आधार कार्ड को लेकर चल रहे विवाद के बीच सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि आधार को मतदाता सूची में वैध पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसे भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आधार केवल एक पहचान पत्र है, जो व्यक्ति की मौजूदगी और उसकी पहचान की पुष्टि करता है। लेकिन यह नागरिकता सिद्ध करने वाला दस्तावेज नहीं है। अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची में आधार को पहचान के साधन के रूप में शामिल करना उचित है, लेकिन इसे नागरिकता साबित करने के लिए मान्यता नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें आधार और मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए थे। याचिकाकर्ता का कहना था कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, फिर भी इसे मतदाता सूची से जोड़ने की अनुमति देना गलत है।
इस पर अदालत ने कहा कि मतदाता सूची तैयार करने के लिए किसी व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करना जरूरी है और आधार इस उद्देश्य की पूर्ति करता है। हालांकि, अदालत ने जोर देकर कहा कि नागरिकता का निर्धारण केवल संविधान और संबंधित कानूनों के प्रावधानों के तहत ही किया जा सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से आधार को लेकर चल रही बहस को एक स्पष्ट दिशा मिलेगी। खासकर उन मामलों में जहां इसे नागरिकता या निवास का अंतिम प्रमाण मानने की कोशिश की जाती रही है।
गौरतलब है कि इससे पहले भी केंद्र सरकार ने संसद में कई बार कहा है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, बल्कि केवल पहचान और निवास का दस्तावेज है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अब इस स्थिति को और मजबूत करता है।