बढ़ते वैश्विक तापमान के पीछे मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं। विकास की तेज रफ्तार और औद्योगिकीकरण के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के मौजूदा स्तर ने पिछले आठ लाख वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2024 रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है। साथ ही चेताया कि यह जलवायु परिवर्तन का संकट काल है, जिसके प्रभाव सदियों तक बने रह सकते हैं। इसका अर्थ है कि वर्तमान पीढ़ी की गलतियों का खामियाजा आने वाली कई नस्लों को भुगतना पड़ेगा। डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट में बढ़ते तापमान के कारण उत्पन्न सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर भी प्रकाश डाला गया है। वर्ष 2024 जलवायु अस्थिरता के लिहाज से इतना उथल-पुथल भरा रहा कि यह जलवायु इतिहास में दर्ज हो गया। 2024 पहला ऐसा वर्ष रहा जब औसत वैश्विक तापमान औद्योगिक युग से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। इस दौरान तापमान में 1.55 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछले 175 वर्षों के जलवायु इतिहास में इसे सबसे गर्म वर्ष बनाता है।वैश्विक तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि के िलए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि और अल नीनो प्रमुख रूप से जिम्मेदार थे। रिपोर्ट में पुष्टि हुई है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा अब पिछले आठ लाख वर्षों में सबसे अधिक हो चुकी है। 2023 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 420 पीपीएम तक पहुंच गया, जो 2022 की तुलना में 2.3 पीपीएम अधिक था। औद्योगिक क्रांति (1750) के मुकाबले यह 151 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है, जो वायुमंडल में 3,27,600 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति के बराबर है। 2024 में भी इन गैसों के स्तर में बढ़ोतरी जारी रही।
धरती के साथ महासागर भी लगातार गर्म हो रहे हैं। बीते आठ वर्षों के दौरान महासागरों में रिकॉर्ड स्तर पर गर्मी बढ़ी है। ग्रीनहाउस गैसों से उत्पन्न 90 फीसदी अतिरिक्त गर्मी समुद्रों में समा जाती है। 2024 में समुद्री तापमान पिछले 65 वर्षों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। महासागर अब 1960 से 2005 की तुलना में दोगुनी तेजी से गर्म हो रहे हैं, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है।