प्रधानमंत्री टीबी मुक्त अभियान के 100 दिन की सफलता के बाद केंद्र सरकार ने अब 300 दिन तक देश में टीबी के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का फैसला किया है। सोमवार को विश्व टीबी दिवस पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में होने वाले कार्यक्रम में इसकी घोषणा की जाएगी। इस दौरान देश के 50 हजार गांवों को टीबी से मुक्त होने का प्रमाणपत्र भी सौंपा जाएगा। इन गांवों में बीते दो साल से एक भी नया केस सामने नहीं आया है। इस बीच, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा वार्षिक टीबी रिपोर्ट जारी करेंगे, जिसमें बताया है कि भारत में टीबी के नए मामलों में गिरावट बढ़कर 25 फीसदी तक पहुंची है। टीबी संक्रमण को लेकर बेहतर कार्य करने वाले राज्यों को भी केंद्र सरकार सम्मानित करने जा रही है। इसमें उत्तर प्रदेश और मेघालय का नाम सबसे ऊपर है, जिन्होंने न सिर्फ गैर लक्षण वाले मरीजों में भी बीमारी की पहचान की, बल्कि पोषण पर भी महीने भर का राशन निशुल्क दिया है। टीबी के इलाज में दवा के साथ पोषण आहार की भूमिका सबसे अहम है। दरअसल, तपेदिक या टीबी संक्रामक बीमारी है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया के कारण होती है। यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों में भी हो सकती है।मेघालय ने निक्षय पोषण पर पहल की है, जिसे लेकर केंद्र सरकार राज्य को सम्मानित करेगी। राज्य स्वास्थ्य मिशन निदेशक राम कुमार एस ने बताया कि प्रत्येक टीबी मरीज और उसके परिवार को 10 किलो चावल, तीन किलो दाल, दो किलो राजमा और 30 अंडे की ट्रे सहित टीबी मरीजों को 18 किलो से ज्यादा राशन शामिल है। केंद्र सरकार से मिलने वाली एक हजार रुपये प्रतिमाह राशि इससे अलग है। प्रति टीबी रोगी सबसे अधिक खर्च करने वाले राज्यों में से एक है, जो दूसरों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।
मेघालय के री भोई जिले के जिलाधिकारी अभिलाष बरनवाल ने बताया कि समाज के जिन चेहरों पर खुलकर चर्चा नहीं होती है, पूर्वोत्तर राज्यों ने उन्हीं नीम-हकीम, ग्रामीण महिलाएं और ऑटो चालकों के दम पर टीबी से छुटकारा पाने का लक्ष्य हासिल करना शुरू कर दिया। इनमें से मेघालय ने तीन हजार नीम-हकीम को प्रशिक्षण देकर पारंपरिक चिकित्सक बना दिया जो अब अपने गांव में संदिग्ध रोगी मिलने पर तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में सूचित कर रहे हैं।