हरिद्वार। उत्तराखंड शासन आगामी अर्धकुंभ को महाकुंभ के रूप में भव्य स्वरूप देने में जुट गया है। सरकार बड़े पैमाने पर आयोजन की रूपरेखा तैयार कर रही है, ताकि यह महोत्सव न केवल देश बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पहचान बना सके। परंतु प्रशासनिक तैयारियों के बीच संत समाज की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। अखाड़े और संत रोज नए सवाल उठाकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, शासन इस धार्मिक महाआयोजन को पहले से अधिक भव्य, सुव्यवस्थित व दर्शनीय बनाने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। बुनियादी ढांचे के विस्तार, सड़क-यातायात सुधार, सुरक्षा प्रबंधन, स्वच्छता और श्रद्धालुओं की सुविधा पर विशेष फोकस किया जा रहा है। सरकार का मानना है कि इससे पर्यटन और धार्मिक अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
हालांकि, संत समाज का तर्क है कि बिना उनके सुझाव और परंपरागत मान्यताओं का सम्मान किए निर्णय लेना उचित नहीं। अखाड़ों ने शिकायत की है कि प्रस्तावित व्यवस्थाओं में उनके अधिकारों और धार्मिक परंपराओं की अनदेखी हो रही है। कई संतों ने खुले मंचों पर सवाल उठाए कि अर्धकुंभ को महाकुंभ घोषित करने की प्रक्रिया और मानकों पर सरकार स्पष्टता क्यों नहीं देती।
एक ओर जहाँ प्रशासनिक बैठकें, निरीक्षण और योजनाओं की समीक्षा लगातार जारी है, वहीं दूसरी ओर संतों और अखाड़ों के विरोध से माहौल बार-बार गरम हो रहा है। यह भी जानकारी सामने आई है कि कई धार्मिक प्रतिनिधि शासन से औपचारिक वार्ता की मांग कर रहे हैं, ताकि मतभेद दूर किए जा सकें और कार्यक्रम की गरिमा बनी रहे।
स्थानीय व्यापारियों और श्रद्धालुओं ने भी चिंता जताई कि यदि विवाद बढ़ा, तो आयोजन की तैयारियों पर असर पड़ सकता है। धार्मिक नगरी होने के नाते हरिद्वार में सभी पक्षों के बीच समन्वय अत्यंत आवश्यक माना जा रहा है।
फिलहाल शासन की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं कि संत समाज की आपत्तियों को गंभीरता से सुना जाए और सहमति के साथ आगे बढ़ा जाए। सभी की निगाहें अब आगामी बैठकों और निर्णयों पर टिकी हैं, जिनसे आयोजन की दिशा-दिशा तय होगी।





