अमेरिका समेत पश्चिम देशों से तनातनी के बीच रूस ने बड़ा दांव चला है। रूस अब भारत के साथ संबंधों को और मजूबत करने की तैयारी में हैं। रूस के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ वालेरी गेरासिमोव ने अमेरिका पर वैश्विक संघर्षों को भड़काने और हथियार नियंत्रण संधियों को खत्म करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मॉस्को का पश्चिम के प्रति न्यूनतम स्तर का भरोसा रखना असंभव है। उन्होंने कहा कि हथियार नियंत्रण समझौते में पश्चिम देशों के दोहरे मानदंड के चलते तमाम बाधाएं आ रही हैं। मॉस्को और पश्चिमी देशों के बीच विश्वास कम होने से हथियार नियंत्रण समझौते का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिहाज से अप्रासंगिक हो गया है। गेरासिमोव ने कहा कि हथियार नियंत्रण का मुद्दा अब पुराने समय की बात बन गया है। क्योंकि पश्चिम के दोहरे मानदंडों के कारण आज न्यूनतम स्तर के विश्वास पर लौटना असंभव है। रूस को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों पर भरोसा नहीं है। इसलिए अब वह चीन, भारत, ईरान, उत्तर कोरिया और वेनेजुएला के साथ संबंध विकसित करेगा। इस बीच रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि विश्वास के बिना पारस्परिक नियंत्रण के लिए प्रभावी तंत्र बनाना असंभव है। इस मामले में कई देशों ने पर्याप्त प्रतिक्रिया उपायों के बारे में सोचना शुरू कर दिया है। यूरोप और एशिया में अमेरिकी मिसाइलों की तैनाती आक्रामक हथियारों को बढ़ावा दे रही है। साथ ही फिलीपींस में अमेरिकी सेना का दखल रूस के लिए विशेष चिंता का विषय है।रूस और अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी परमाणु शक्तियां हैं। दोनों ने हथियार नियंत्रण संधियों के खत्म होने पर एक-दूसरे को दोषी ठहराया था। इन संधियों का उद्देश्य हथियारों की दौड़ को धीमा करना और परमाणु युद्ध के जोखिम को कम करना था। रूस और चीन को अमेरिका सबसे बड़ा खतरा मानता है। साथ ही 1972 की एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल संधि और 1987 की इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस (आईएनएफ) संधि के टूटने के लिए रूस को दोषी ठहराता है।
अमेरिका ने 2019 में खुद को INF संधि से अलग कर लिया था। उसने रूस पर संधि उल्लंघन का आरोप लगाया था। इसके बाद अमेरिका 2002 में एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल संधि से अलग हो गया था। वहीं 2023 में रूस ने न्यू स्टार्ट संधि में भाग नहीं लिया था। यह संधि रणनीतिक परमाणु हथियारों को सीमित करती है। संधि में शामिल न होने के लिए रूस ने यूक्रेन को अमेरिका के समर्थन जिम्मेदार ठहराया।