ब्रुसेल्स/वाशिंगटन। अमेरिका के रूस के तेल और ऊर्जा सेक्टर पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद अब यूरोपीय संघ (EU) ने भी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को नया झटका दिया है। EU ने रूस से तेल आयात को बढ़ावा देने वाले छद्म तेल वाहनों और फ्लैग-ऑफ-कन्ट्रैक्ट शिपिंग बेड़े (Shadow Oil Fleet) पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका उद्देश्य रूस की तेल निर्यात क्षमता को सीमित करना और उसके वित्तीय संसाधनों पर दबाव बढ़ाना बताया गया है।
EU की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह कदम रूस के तेल उद्योग के “अवैध मार्गों और भ्रामक गतिविधियों” को रोकने के लिए उठाया गया है। छद्म तेल बेड़े का मतलब उन जहाजों और कंपनियों से है जो रूस का तेल विदेशों में बेचने के लिए झूठे पंजीकरण और शिपिंग दस्तावेजों का प्रयोग करते हैं। अब EU के बंदी सूची में आने वाले जहाज और कंपनियां यूरोपीय बंदरगाहों पर प्रवेश नहीं कर सकेंगी और उनके साथ कोई व्यापार नहीं किया जा सकेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार पर रूस की पकड़ को कमजोर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक रणनीति है। इससे न केवल रूस के राजस्व पर असर पड़ेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय खरीदारों को भी अपनी खरीद नीतियों में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
EU ने अमेरिका के प्रतिबंधों के बाद यह कदम उठाते हुए संकेत दिया कि पश्चिमी देशों का दबाव रूस पर लगातार बढ़ रहा है। EU अधिकारियों ने कहा कि यह प्रतिबंध केवल रूस के आर्थिक साधनों को लक्षित करने के लिए है, न कि आम नागरिकों या सामान्य व्यापारिक गतिविधियों को प्रभावित करने के लिए।
इससे पहले अमेरिका ने अपने ऊर्जा क्षेत्र के बड़े निगमों को रूस के तेल और गैस सौदों से रोकने के लिए कठोर प्रतिबंध लगाए थे। अमेरिकी प्रतिबंधों और अब EU के बैन के बाद रूस की तेल निर्यात क्षमता में संभावित कमी को लेकर वैश्विक बाजार में चिंताएं बढ़ गई हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले महीनों में रूस के लिए नए विकल्प और वैकल्पिक मार्केट खोजने की चुनौती और बढ़ जाएगी। वहीं, पश्चिमी देशों की यह संयुक्त कार्रवाई यह संदेश देती है कि युद्ध या भू-राजनीतिक दबाव की स्थिति में आर्थिक हथियारों का प्रयोग प्रभावी रूप से किया जा सकता है।