Wednesday, January 8, 2025

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अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बांड एक्सचेंज ऑफर का समापन; ऋण पुनर्गठन

श्रीलंका ने अपने अंतर्राष्ट्रीय सॉवरेन बॉन्ड एक्सचेंज ऑफर के सफल समापन की घोषणा की है, जिसमें 98 प्रतिशत बॉन्डधारकों ने भाग लिया। यह कदम देश को अपने ऋण का पुनर्गठन करने और नई बॉन्ड प्राप्त करने में मदद करेगा। श्रीलंका ने यह घोषणा शुक्रवार को की गई, जो 14.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण पुनर्गठन समझौते के कुछ दिनों बाद आई है, जिसे पिछले शासन में तय किया गया था। इस समझौते के तहत मौजूदा बॉन्ड के बदले नए बॉन्ड जारी किए जाएंगे और यह कदम आईएमएफ द्वारा कर्ज स्थिरता बनाए रखने के लिए जरूरी था।श्रीलंका के राष्ट्रपति और वित्त मंत्री अनुरा कुमारा दिसानायके ने इस उच्च भागीदारी को एक विश्वासमत के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि इस विनिमय में बाजार प्रतिभागियों की बड़ी भागीदारी यह दिखाती है कि सरकार की योजना में विश्वास है।श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने शुक्रवार को अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय हितधारकों से उच्च भागीदारी को एक विश्वासमत के रूप में सराहा। उन्होंने कहा हम अपने अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय बॉन्डधारकों से इस विश्वास को देखकर बहुत प्रसन्न हैं। पिछले कुछ साल श्रीलंकाई जनता के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण रहे हैं, लेकिन हमारे सामूहिक प्रयास अब फल दे रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा इस ऋण विनिमय का कार्यान्वयन, जो दो वर्षों की गहन वार्ता का परिणाम है। श्रीलंका को पर्याप्त ऋण राहत प्रदान करेगा। इससे हमारे विकास और सामाजिक योजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए अल्प और मध्यम अवधि में संसाधन मिलेंगे और हमारे सार्वजनिक वित्त की दीर्घकालिक स्थिरता बहाल होगी। उन्होंने कहा कि आज हम अपने इतिहास का एक नया अध्याय शुरू कर रहे हैं और कई वर्षों के संकट के बाद एक नया रास्ता चुन रहे हैं।
जानकारी के अनुसार IMF ने श्रीलंका को 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की विस्तारित निधि सुविधा (EFF) प्रदान की है। IMF ने शनिवार को स्टाफ-स्तरीय समझौते को मंजूरी दी, जिससे चार वर्षीय सुविधा की चौथी किश्त – लगभग 330 मिलियन अमेरिकी डॉलर – प्राप्त होगी।
श्रीलंका को अप्रैल 2022 में संप्रभु डिफ़ॉल्ट घोषित करने के बाद गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था, जो 1948 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से उसका पहला डिफ़ॉल्ट था। इस संकट के कारण महीनों तक सार्वजनिक विरोध हुए, और तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़ना पड़ा।

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