यमन स्थित हूती विद्रोहियों पर हमले की सूचना लीक होने के मामले में ट्रंप सरकार घिर गई है। डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों ने इस मामले की जांच देश की सबसे बड़ी कानून प्रवर्तन एजेंसी एफबीआई से कराने की मांग की है। इसे लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि यह एफबीआई से जुड़ा मामला नहीं है। जांच एजेंसी के पास और भी बड़े काम हैं। यमन स्थित हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर हमले के लिए अमेरिकी अधिकारियों ने मैसेजिंग एप सिग्नल पर एक ग्रुप बनाया था। वाल्ट्ज ने इस ग्रुप को बनाने के बाद इसमें ट्रंप प्रशासन के 18 शीर्ष अधिकारियों को जोड़ा। इनमें उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, विदेश मंत्री मार्को रूबियो, राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड व केंद्रीय खुफिया एजेंसी निदेशक जॉन रैटक्लिफ शामिल थे। इस ग्रुप में द अटलांटिक मैग्जीन के संपादक जेफ्री गोल्डबर्ग भी जुड़े हुए थे। उन्होंने यमन में हूतियों पर हमले की अमेरिकी योजना का पूरा खुलासा कर दिया। इसके बाद डेमोक्रेटिक सांसद मामले की जांच की मांग कर रहे हैं। सीनेट और सदन में डेमोक्रेटिक सांसदों ने एफबीआई के निदेशक काश पटेल को घेरा। सांसदों ने सवाल उठाया कि क्या कानून प्रवर्तन एजेंसी इसकी जांच करेगी? हालांकि इसका काश पटेल ने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि वह इस चैट का हिस्सा नहीं थे। मामले में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जोर देकर कहा कि यह एफबीआई का मामला नहीं है। एफबीआई के पास और भी कई मामलों की जांच पहले से है।
अमेरिका के जासूसी अधिनियम के मुताबिक एफबीआई और न्याय विभाग दशकों से राष्ट्रीय रक्षा जानकारी के दुरुपयोग को नियंत्रित करने के मामलों की जांच करते रहे हैं। सांसदों का कहना है कि न्याय विभाग भी इस मामले की जांच कर सकता है। मगर इसे लेकर भी न्याय विभाग ने अपना रुख साफ नहीं किया है। न्याय विभाग के पूर्व अभियोजक माइकल ज्वेइबैक ने कहा कि हाल के वर्षों में कई हाई-प्रोफाइल हस्तियों को ऐसे मामले में जांच के दायरे में लाया गया है। लेकिन सार्वजनिक अधिकारियों के लिए आपराधिक आरोपों से बचने या सजा से बचने के भी उदाहरण सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व जांच के मामलों में कई निर्धारित मानक थे। इसमे देखा जाता था कि वे किस प्रकार के खुलासे करने जा रहे हैं।