केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व वाली सरकार की सराहना की। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को एक समग्र दृष्टिकोण से सुलझाया है। शाह बंगलूरू में आदिचुंचनगिरी विश्वविद्यालय के नए परिसर के उद्घाटन के मौके पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा, हमारे नेता नरेंद्र मोदी ने कई साल पहले गुजरात में कहा था कि गरीबों की सबसे बड़ी समस्या बीमारी और उपचार पर खर्च है। सरकार को गरीबों के उपचार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। आज मुझे गर्व है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने 60 करोड़ गरीबों को हर साल पांच लाख रुपये तक का मुफ्त उपचार करवाया है। शाह ने बताया कि मोदी सरकार ने स्वास्थ्य को लेकर कई पहलें शुरू की हैं, जिनमें 12 करोड़ घरों में शौचालय बनवाना, फिट इंडिया मूवमेंट, योग दिवस, मिशन इंद्रधनुष, पोषण अभियान, आयुष्मान भारत और भारतीय जनऔषधि परियोजना शामिल हैं। उन्होंने कहा, सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि एक नागरिक को मां के गर्भ में जन्म लेने से लेकर पूर्ण नागरिक बनने तक किसी बीमारी का सामना न करना पड़े और यदि वह बीमार होता है, तो उपचार महंगा न हो।
गृह मंत्री ने यह भी बताया कि देश में डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने के लिए बड़े कदम उठाए जा रहे हैं। 2014 में देश में 7 एम्स थे, अब 23 एम्स हैं। मेडिकल कॉलेजों की संख्या 387 से बढ़कर 780 हो गई है। उन्होंने बताया, 2014 में 51,000 एमबीबीएस सीटें थीं, आज यह संख्या 1,18,000 हो गई है। पीजी सीटें 31,000 से बढ़कर 74,000 हो गई हैं। यानी हर साल देश में 1,18,000 एमबीबीएस डॉक्टर और 74,000 स्पेशलिस्ट डॉक्टर तैयार हो रहे हैं। इस कार्यक्रम में केंद्रीय भारी उद्योग और इस्पात मंत्री एच डी कुमारस्वामी, रेल और जल शक्ति राज्य मंत्री वी सोमन्ना और आदिचुंचनगिरी मठ के निर्मलानंदनाथ महास्वामीजी भी मौजूद थे। वहीं, आज केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु और सामान्य शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने केंद्रीय गृह मंत्री शाह के कथित अंग्रेजी विरोधी बयान की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह एक ‘संकीर्ण’ राजनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। उन्होंने इसे निंदनीय बताया। आर. बिंदु ने कहा कि अंग्रेजी दुनिया की सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली भाषा है, चाहे वह आपसी संवाद हो या इंटरनेट पर संपर्क। उन्होंने कहा, यह विचार कि बच्चों को अंग्रेजी नहीं सीखनी चाहिए या यह शर्मिंदगी का कारण होगी, बच्चों की दुनिया को और सीमित कर देगा। भारत कोई अलग-थलग टापू नहीं है, इसलिए अंग्रेजी सीखना आज एक जरूरत बन गया है।