कनखल – वह पुण्य भूमि, जहां हर कण में अध्यात्म की ऊर्जा है, और हर श्वास में शिव का स्पंदन। सावन के इस पावन माह में यह नगरी भगवान शिव की विशेष कृपा से आलोकित हो जाती है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार, कनखल कभी ब्रह्मा पुत्र राजा दक्ष की राजधानी थी। यहीं उन्होंने विराट यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें भगवती सती ने अपने अपमान के विरोध में आत्माहुति दी। उसी यज्ञ भूमि पर विष्णु, ब्रह्मा, इंद्र, नारद और 84,000 ऋषियों के चरण पड़े थे।
कहते हैं, महादेव स्वयं यक्ष, गंधर्व और किन्नरों के साथ सती को ब्याहने कनखल आए थे। परंतु सती की आत्माहुति के बाद जब तक दक्ष जीवित रहे, शिव दोबारा इस भूमि पर नहीं आए। परंतु अब हर सावन में वचन निभाते हुए दक्षेश्वर के रूप में पुनः विराजते हैं।
कनखल की धरती ने न केवल यज्ञग्नि की उत्पत्ति देखी, बल्कि यह शक्ति और शिवत्व दोनों का केंद्र बनी। आकाश में शिव के पांच ज्योतिर्थ – दक्षेश्वर, बिल्वकेश्वर, नीलेश्वर, वीरभद्र और नीलकंठ स्थित हैं, जबकि शक्ति के पांच ज्योति स्थल – मायादेवी, चंडी देवी, मनसा देवी, सतीकुंड और शीतला मंदिर – पाताल और पृथ्वी पर फैले हैं।
शीतला मंदिर को सती का जन्मस्थान माना जाता है और मायादेवी मंदिर वह स्थल है जहां उनकी पार्थिव देह को वीरभद्र ने रखा था। यही से शिव ने कंधे पर सती की देह उठाकर तांडव किया था, और जहां-जहां वह देह गिरी, वहां 52 शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
इन सभी ज्योति स्थलों की कृपा वर्षा से ही सावन में कांवड़ यात्रा सफल होती है। कनखल का कण-कण, शिव और शक्ति की इस अलौकिक कथा को जीवंत करता है। यही कारण है कि सावन में यह नगरी केवल तीर्थ नहीं, बल्कि दिव्यता का जीता-जागता केंद्र बन जाती है।
सावन में कनखल के कण-कण में शिवत्व और शक्ति का वास
