Saturday, November 15, 2025

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संयुक्त राष्ट्र में भारत ने उठाया जलवायु वित्त और तकनीक स्थानांतरण का मुद्दा, आईसीजे को लेकर भी दिया स्पष्ट बयान

न्यूयॉर्क। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय सहायता और तकनीकी हस्तांतरण के मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि विकसित देशों को अपने वादों पर अमल करते हुए विकासशील देशों को जलवायु वित्त मुहैया कराना चाहिए, ताकि वे हरित विकास के लक्ष्यों को हासिल कर सकें।

भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के अधिकार क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर उसका रुख सार्वभौमिकता और घरेलू नीतियों की स्वतंत्रता के सिद्धांत पर आधारित रहेगा।

“जलवायु न्याय की मांग अब जरूरी”

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक साझा चुनौती है, लेकिन इसके लिए समान जिम्मेदारी का बंटवारा होना चाहिए। उन्होंने कहा,

“विकसित देशों ने दशकों तक औद्योगिकीकरण के जरिए पृथ्वी के संसाधनों का दोहन किया। अब समय है कि वे विकासशील देशों को तकनीक, वित्त और क्षमता निर्माण में सहायता प्रदान करें।”

उन्होंने दोहराया कि भारत ‘जलवायु न्याय’ (Climate Justice) और ‘सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियां’ (CBDR) के सिद्धांत पर दृढ़ है। भारत ने दुनिया के सामने यह उदाहरण रखा है कि बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए भी तेज आर्थिक विकास संभव है।

भारत ने दी अपनी प्रतिबद्धता की जानकारी

भारत ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष बताया कि वह 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने, और 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और ग्रीन ग्रिड पहल जैसी योजनाओं के माध्यम से वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा सहयोग को मजबूत किया है।

“तकनीकी हस्तांतरण में बाधाएं दूर करें”

भारत ने कहा कि कई विकासशील देशों के पास हरित प्रौद्योगिकी अपनाने की क्षमता तो है, लेकिन महंगी तकनीक और पेटेंट अधिकारों के कारण वे इसका लाभ नहीं उठा पा रहे। भारत ने विकसित देशों से आग्रह किया कि वे तकनीकी हस्तांतरण के मौजूदा तंत्र को और व्यावहारिक और सुलभ बनाएं।

ICJ पर भारत का रुख स्पष्ट

सत्र के दौरान एक अलग एजेंडे में भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) को लेकर भी अपना दृष्टिकोण रखा। भारत ने कहा कि वह अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति प्रतिबद्ध है, लेकिन किसी भी देश के आंतरिक मामलों या घरेलू नीति निर्णयों पर अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है।
प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को सदस्य देशों की संप्रभुता और लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए।

“साझा जिम्मेदारी, साझा समाधान”

अपने वक्तव्य के अंत में भारत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग, न कि एकतरफा निर्णय, ही स्थायी समाधान का मार्ग है।

“भारत एक ऐसे भविष्य की कल्पना करता है, जहां विकास, पर्यावरण और समानता एक साथ आगे बढ़ें — क्योंकि यह केवल पृथ्वी की रक्षा नहीं, बल्कि मानवता के अस्तित्व का प्रश्न है,” भारतीय प्रतिनिधि ने कहा।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की इस पहल को विकासशील देशों की आवाज और प्राथमिकताओं के प्रतिनिधित्व के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु वित्त और तकनीकी हस्तांतरण पर भारत का रुख अब वैश्विक जलवायु वार्ताओं का केंद्रबिंदु बनता जा रहा है।

 

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