Wednesday, March 12, 2025

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वोटर कार्ड नंबर में दोहराव नया नहीं पहले भी होता था

संसद के भीतर और बाहर जिस डुप्लीकेट वोटर कार्ड (ईपीआईसी) के नंबरों को लेकर जमकर बवाल हो रहा है। साथ ही राजनीतिक दल जिसके जरिये चुनाव आयोग की वैधता पर ही सवाल उठे हैं, वह कोई नया नहीं बल्कि पुराना मामला है। चुनाव आयोग ने सूत्रों ने बताया 2008-2013 में भी बड़े पैमाने पर मतदाताओं को डुप्लीकेट ईपीआईसी नंबर जारी किए गए थे। ऐसे कई कार्ड और मतदाताओं के विवरण अमर उजाला के पास भी हैं, जो 2008 और 2013 के बने हुए हैं। उस दौर में देश में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए का शासन था। जाहिर है कि न तो मुद्दा नया है और समान ईपीआईसी आवंटन का मामला। पिछले दिनों आयोग ने राज्यों को ईपीआईसी में सभी विसंगतियों को दूर करने का निर्देश दिया था। हालांकि, जैसा कि ईसीआई ने 7 मार्च के अपने प्रेस नोट में पहले ही स्पष्ट कर दिया है, एक जैसे ईपीआईसी नंबर के बावजूद, कोई भी मतदाता केवल अपने निर्धारित मतदान केंद्र पर ही वोट डाल सकता है। क्योंकि उसकी पहचान, पता, मतदान केंद्र और निवास एक नहीं हो सकता। आयोग के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान भी ऐसे मामले आए थे, तब आयोग ने उन मतादाताओं को नया नंबर आवंटित किया था। इसलिए न तो यह मुद्दा नया है और न ही समाधान। बीते शुक्रवार को चुनाव आयोग (ईसी) ने कहा था कि वह दशकों पुरानी डुप्लिकेट मतदाता पहचान पत्र (ईपीआईसी) नंबरों की समस्या को अगले तीन महीने में हल कर लेगा। चुनाव आयोग ने एक बयान में कहा कि भारत के चुनावी रजिस्टर दुनिया का सबसे बड़ा मतदाता डेटाबेस है, जिसमें 99 करोड़ से अधिक मतदाता पंजीकृत हैं।

पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस ने कई राज्यों में डुप्लिकेट मतदाता पहचान पत्र नंबरों का मुद्दा उठाया और चुनाव आयोग पर कवर-अप का आरोप भी लगाया है। टीएमसी के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को कोलकाता में चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की और एक ही मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) नंबर के बारे में अपनी शिकायतें दर्ज कराईं। चुनाव आयोग के अधिकारियों के साथ बैठक के बाद पश्चिम बंगाल के मंत्री और कोलकाता मेयर फिरहाद हकीम ने पत्रकारों से कहा कि प्रत्येक मतदाता के पास एक विशिष्ट पहचान पत्र संख्या होनी चाहिए और उन्होंने इसे सुनिश्चित करने के लिए भौतिक सत्यापन की मांग की।

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