नई दिल्ली। ‘वंदे मातरम’ की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में राजधानी दिल्ली में शनिवार को एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि यह देशभक्ति का मंत्र और भारत की आत्मा है, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा और दिशा दी थी।
होसबोले ने कहा कि जब बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने यह गीत लिखा था, तब उन्होंने भारत माता को राष्ट्र की सर्वोच्च शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। “वंदे मातरम ने न सिर्फ भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को प्रेरित किया, बल्कि यह गीत हर भारतीय के हृदय में राष्ट्रप्रेम की ज्योति जलाने का काम करता है,” उन्होंने कहा।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने इस गीत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व पर विस्तार से चर्चा की। होसबोले ने कहा कि वंदे मातरम आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना आज़ादी के आंदोलन के दौर में था। “यह गीत हमें अपनी जड़ों, अपनी सभ्यता और अपने कर्तव्य का स्मरण कराता है,” उन्होंने जोड़ा।
आरएसएस महासचिव ने यह भी कहा कि भारत जैसे विविधताओं वाले देश में वंदे मातरम एकता और गौरव का प्रतीक है। “जो लोग इस गीत को विभाजनकारी कहने की कोशिश करते हैं, वे उसके अर्थ और भावना को समझ नहीं पाए हैं। यह गीत मातृभूमि के प्रति समर्पण और सम्मान का प्रतीक है,” उन्होंने कहा।
इस अवसर पर देश के कई सांस्कृतिक संगठनों और शिक्षण संस्थानों ने भी कार्यक्रम में भाग लिया। विद्यार्थियों और कलाकारों ने वंदे मातरम के विभिन्न रूपों में प्रस्तुतियां दीं — कहीं इसे शास्त्रीय संगीत में गाया गया, तो कहीं लोकधुनों पर प्रस्तुत किया गया।
कार्यक्रम में इतिहासकारों ने बताया कि वंदे मातरम पहली बार 1875 में लिखा गया था और बाद में यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का प्रेरक गीत बन गया। 1905 के बंग-भंग आंदोलन से लेकर 1947 तक यह गीत जनआंदोलनों की आवाज बना रहा।
समारोह के अंत में उपस्थित लोगों ने सामूहिक रूप से वंदे मातरम गाकर राष्ट्र के प्रति श्रद्धा व्यक्त की।





