नई दिल्ली / कीव। एक ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत रूस को लड़ाकू विमानों के लिए आवश्यक फ्यूल एडिटिव्स का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। यह जानकारी यूक्रेन स्थित एक प्रमुख थिंक टैंक ने साझा की है, जिसने पिछले साल के डेटा और अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रवृत्तियों का हवाला देते हुए यह निष्कर्ष निकाला है।
क्या हैं फ्यूल एडिटिव्स?
फ्यूल एडिटिव्स ऐसे रसायन हैं जो विमान, जहाज या अन्य इंजनों के ईंधन में मिलाए जाते हैं, ताकि उनकी कार्यक्षमता बढ़े, इंजन सुरक्षित रहे और उच्च तापमान व दबाव में भी ईंधन स्थिर रहे। थिंक टैंक के अनुसार, रूस के सैन्य विमानों के संचालन के लिए ये एडिटिव्स अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
यूक्रेनी थिंक टैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वैश्विक सैन्य आपूर्ति श्रृंखला पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद, रूस ने फ्यूल एडिटिव्स के लिए भारत जैसे विश्वसनीय आपूर्तिकर्ताओं पर भरोसा किया। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले वर्ष भारत से रूस को फ्यूल एडिटिव्स की निर्यात मात्रा में 30 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई।
थिंक टैंक ने यह भी बताया कि भारत इस समय कई प्रकार के एडिटिव्स का उत्पादन कर रहा है, जिनमें एंटी-ऑक्सीडेंट, एनजाइम बेस्ड रसायन और इंजन परफॉर्मेंस बढ़ाने वाले कंपाउंड शामिल हैं। इनकी वैश्विक मांग बढ़ने के कारण भारत को रूस के लिए मुख्य आपूर्तिकर्ता का दर्जा मिला।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक और सैन्य प्रतिबंधों के बीच भारत की भूमिका रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो गई है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत सरकार ने हमेशा स्पष्ट किया है कि उसकी व्यापारिक नीतियाँ अंतरराष्ट्रीय कानून और नियमों के तहत संचालित होती हैं।
विदेश नीति विशेषज्ञ डॉ. अनिल वर्मा कहते हैं, “भारत की यह स्थिति तकनीकी और औद्योगिक क्षमता का नतीजा है। हालांकि यह रूस को लाभ पहुंचा रही है, भारत ने हमेशा अपने निर्यात को सैन्य उपकरणों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि यह मुख्य रूप से औद्योगिक रसायनों का व्यवसाय है।”
भारत की औद्योगिक क्षमताएँ
भारत में फ्यूल एडिटिव्स बनाने वाली कंपनियां उच्च तकनीक वाली हैं और इनके उत्पाद सभी अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस के साथ व्यापार में बढ़ोतरी से भारत की उद्योग और अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिला है, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि ऐसे निर्यात पर भविष्य में अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ सकता है।





