नई दिल्ली। दिल्ली में हाल ही में हुए धमाके के बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने आतंकी गतिविधियों के मामलों पर सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम — यूएपीए — के तहत गिरफ्तार एक आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि जब जांच एजेंसियों के पास आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत हों और बरामद सामग्री भड़काऊ या राष्ट्रविरोधी प्रकृति की हो, तो उसे रिहा करने का कोई औचित्य नहीं बनता।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि देश की सुरक्षा और सामाजिक शांति सर्वोपरि है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में न्यायालयों को “राष्ट्रीय हित” को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि इस तरह की गतिविधियां आम नागरिकों की सुरक्षा पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालती हैं।
जांच एजेंसियों के अनुसार, आरोपी के पास से देश विरोधी सामग्री, भड़काऊ पर्चे, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले डिजिटल दस्तावेज मिले थे। एजेंसियों का दावा है कि आरोपी का संबंध ऐसे समूहों से था, जो देश में अस्थिरता फैलाने की साजिश रच रहे थे।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि यूएपीए के तहत अभियुक्त की जमानत तभी दी जा सकती है जब अदालत यह संतुष्ट हो जाए कि अभियोजन का मामला प्रथम दृष्टया गलत या कमजोर है। परंतु इस मामले में जांच के दौरान जो साक्ष्य सामने आए हैं, वे गंभीर और ठोस हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में अदालतों को तथ्यों का गहराई से मूल्यांकन करना चाहिए और केवल सहानुभूति के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा, “जब देश की एकता और अखंडता पर खतरा हो, तो न्यायिक सहानुभूति नहीं, बल्कि संवैधानिक दृढ़ता की आवश्यकता होती है।”
इस फैसले को सुरक्षा एजेंसियों के मनोबल को बढ़ाने वाला माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि हाल के दिनों में आतंकवाद विरोधी कानूनों के दुरुपयोग और जमानत को लेकर चल रही बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक स्पष्ट संदेश देता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में कोई नरमी नहीं बरती जाएगी।
गौरतलब है कि दिल्ली धमाके के बाद देशभर में सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं और संदिग्ध गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जा रही है। अदालत के इस निर्णय को ऐसे समय में अहम माना जा रहा है जब आतंकवाद और चरमपंथ से निपटने के लिए कानून व्यवस्था पर और अधिक सख्ती की मांग उठ रही है।
यूएपीए आरोपी की जमानत याचिका खारिज





