नई दिल्ली / नैपीतॉ। म्यांमार की सैन्य सरकार ने अपनी वायुसेना को नई तकनीक और मारक क्षमता से लैस करते हुए रूस और चीन से प्राप्त लड़ाकू विमानों व हेलिकॉप्टरों को औपचारिक रूप से अपने बेड़े में शामिल कर लिया है। इस कदम को देश की सेना द्वारा आंतरिक विद्रोही गुटों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों को और तेज करने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है।
रूस और चीन से मिली आधुनिक वायु शक्ति
रक्षा सूत्रों के अनुसार, म्यांमार ने हाल ही में रूस से सुखोई (Sukhoi) और याक (Yak) श्रृंखला के उन्नत लड़ाकू विमान, तथा चीन से Z-9 और CH-4 ड्रोन समेत कई आधुनिक हेलिकॉप्टर और निगरानी प्रणालियां हासिल की हैं। इन विमानों में एयर-टू-ग्राउंड मिसाइल सिस्टम, नाइट विजन तकनीक और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर उपकरण लगे हैं, जो वायुसेना की हमलावर क्षमता को कई गुना बढ़ा देंगे।
सेना के प्रवक्ता ने कहा कि “इन विमानों और हेलिकॉप्टरों के शामिल होने से म्यांमार एयरफोर्स अब किसी भी इलाके में तेजी से प्रतिक्रिया देने और लगातार हवाई निगरानी करने में सक्षम होगी।”
आंतरिक विद्रोह से निपटने में मिलेगी बढ़त
विदेशी रक्षा विश्लेषकों के मुताबिक, यह सैन्य विस्तार मुख्यतः उन क्षेत्रों को ध्यान में रखकर किया गया है जहाँ सेना जातीय सशस्त्र संगठनों (Ethnic Armed Groups) से संघर्ष कर रही है। विशेष रूप से काचिन, करेन और चिन प्रांतों में बीते कुछ महीनों में विद्रोही ताकतों ने कई सैन्य ठिकानों पर कब्जा किया है। अब नए विमानों की तैनाती से सेना इन गुटों के खिलाफ हवाई हमले और लॉजिस्टिक सपोर्ट को सुदृढ़ कर सकेगी।
रूस-म्यांमार रक्षा सहयोग में नई गहराई
म्यांमार पिछले कुछ वर्षों से रूस का प्रमुख रक्षा साझेदार बनता जा रहा है। रूस ने न केवल हथियार और विमान उपलब्ध कराए हैं, बल्कि म्यांमार के पायलटों और इंजीनियरों के प्रशिक्षण की भी जिम्मेदारी ली है। वहीं, चीन ने भी अपने सहयोग के तहत निगरानी ड्रोन, मिसाइल सिस्टम और तकनीकी सहायता प्रदान की है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम म्यांमार की सेना के लिए “रणनीतिक आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम” है, जो उसे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से इतर अपनी रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करेगा।
मानवाधिकार संगठनों ने जताई चिंता
दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इस सैन्य विस्तार पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने आशंका जताई है कि नए लड़ाकू विमान और हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल नागरिक इलाकों में बमबारी और दमनात्मक कार्रवाइयों में किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, म्यांमार में फरवरी 2021 की सैन्य तख्तापलट के बाद से अब तक हजारों लोग हवाई हमलों में मारे जा चुके हैं।
क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों पर भी असर
दक्षिण-पूर्व एशिया में म्यांमार की सैन्य गतिविधियां क्षेत्रीय संतुलन पर भी असर डाल सकती हैं। भारत, थाईलैंड और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों की सीमाएं म्यांमार से सटी हैं, ऐसे में नए हथियारों की तैनाती से सीमाई सुरक्षा और शरणार्थी संकट के नए आयाम खुल सकते हैं।
सेना बोली – ‘राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि’
म्यांमार की सेना ने अपने बयान में कहा कि देश की “संप्रभुता और आंतरिक स्थिरता” की रक्षा के लिए यह कदम उठाया गया है। सेना ने दावा किया कि उसका उद्देश्य किसी समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि “राष्ट्रविरोधी सशस्त्र समूहों” के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई करना है।





