मोबाइल, टैबलेट और कंप्यूटर स्क्रीन पर बहुत ज्यादा वक्त बिताना किशोरों, खासकर लड़कियों के लिए नुकसादायक साबित हो सकता है, क्योंकि यह उनकी नींद में खलल डालता है, और उनमें डिप्रेशन का खतरा बढ़ाता है। यह खुलासा स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं के प्लॉस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन में हुआ है। पहले भी कई शोधों में देखा गया है कि स्क्रीन पर ज्यादा वक्त बिताना नींद और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे चिंता और डिप्रेशन से जुड़ा हुआ है। लेकिन अब तक ये साफ नहीं था कि नींद की दिक्कत डिप्रेशन लाती है, या डिप्रेशन नींद में खलल डालता है। इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए स्वीडन के करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने 12 से 16 साल के 4,810 छात्रों पर एक साल तक अध्ययन किया। उन्होंने छात्रों के स्क्रीन टाइम, नींद की गुणवत्ता और डिप्रेशन के लक्षणों का आकलन किया। शोध में देखा गया कि स्क्रीन पर अधिक वक्त बिताने से तीन महीनों के अंदर ही इन छात्रों की नींद में खलल पड़ने लगा था। इससे उनकी नींद का वक्त भी घटा और उसकी गुणवत्ता भी गिरी। बहुत से किशोर देर रात सोने लगे। शोधकर्ताओं ने बताया कि स्क्रीन टाइम से नींद की कई परतों पर एक साथ असर होता है। इसका असर लड़कियों में डिप्रेशन के रूप में दिखा, जबकि लड़के नींद की कमी के कारण बाहरी तौर पर अधिक आक्रामक हो गए थे। उनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन या गुस्सा साफ दिखा। स्वीडन की सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी ने सितंबर 2024 में सलाह दी थी कि किशोरों को अपनी नींद में सुधार लाने के लिए फुर्सत के वक्त में रोजाना 2 से 3 घंटे से अधिक स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसे दिशा-निर्देशों से किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।
शोध में स्क्रीन टाइम का असर लड़कों और लड़कियों पर अलग-अलग होता है। लड़कों में स्क्रीन टाइम सीधे-सीधे डिप्रेशन का कारण बना। जबकि लड़कियों में स्क्रीन टाइम से पहले नींद में खलल पड़ने की परेशानी पेश आई और फिर उसी के चलते डिप्रेशन के लक्षण आए। शोधकर्ताओं ने देखा कि लड़कियों में स्क्रीन टाइम अधिक होने से 38 से 57 फीसदी मामलों में पहले नींद में खलल पड़ा और उसके बाद डिप्रेशन हुआ, जबकि स्क्रीन टाइम अधिक होने से लड़कों की नींद में खलल तो पड़ा, लेकिन उनमें नींद कम लेना डिप्रेशन की कम ही वजह बनी थी।