Thursday, December 25, 2025

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मोदी–पुतिन दोस्ती मजबूत, पर व्यापार अभी भी पीछे; 100 बिलियन डॉलर तक कैसे पहुंचेगा भारत–रूस व्यापार?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दोस्ती को दुनिया भर में एक स्थिर और भरोसेमंद साझेदारी के रूप में देखा जाता है। दोनों नेताओं के बीच पिछले ढाई दशकों में विकसित हुआ संबंध राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक स्तर पर लगातार मजबूत होता गया है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मोदी और पुतिन की सहजता, पारस्परिक सम्मान और स्पष्ट संवाद इसका प्रमाण हैं। लेकिन इन सभी सकारात्मक पहलुओं के बावजूद एक क्षेत्र ऐसा है जहाँ भारत–रूस संबंध अभी भी अपने लक्ष्य से काफी पीछे हैं—और वह है द्विपक्षीय व्यापार।

बीते वर्षों में भारत–रूस व्यापार में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन अभी भी यह 100 बिलियन डॉलर के उस लक्ष्य से पीछे है, जिसकी चर्चा दोनों देशों के नेतृत्व स्तर पर बार-बार होती रही है। रूस से भारत मुख्यत: ऊर्जा, रक्षा उपकरण, उर्वरक और कच्चा माल आयात करता है, जबकि भारत रूस को दवाइयाँ, ऑर्गेनिक केमिकल्स, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि उत्पाद निर्यात करता है। व्यापार असंतुलन सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है, क्योंकि रूस से आयात भारतीय निर्यात की तुलना में कई गुना अधिक है।

विशेषज्ञों का कहना है कि व्यापार को 100 बिलियन डॉलर के स्तर तक पहुँचाने के लिए सबसे पहले लॉजिस्टिक और भुगतान व्यवस्था की बाधाओं को दूर करना होगा। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण वित्तीय लेनदेन, शिपिंग और बीमा संबंधी प्रक्रियाएँ जटिल हो गई हैं। इसी वजह से भारतीय कंपनियाँ रूसी बाजार में विस्तार करने से हिचकिचा रही हैं। साथ ही, कई उद्योग क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच मानक और नियामकीय प्रक्रियाओं का अंतर भी व्यापार गति को धीमा करता है।

भारत और रूस के अधिकारियों का मानना है कि तेल व्यापार में विस्तार, चाबहार–उत्तर–दक्षिण परिवहन गलियारे को तेज करना और परमाणु ऊर्जा व अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में संयुक्त परियोजनाओं को बढ़ावा देकर व्यापार को उल्लेखनीय स्तर तक पहुँचाया जा सकता है। कृषि उत्पादों, फार्मा, आईटी सेवाओं और टेक्नोलॉजी साझेदारी जैसे क्षेत्रों को भी नई संभावनाओं के रूप में देखा जा रहा है।

मोदी और पुतिन के बीच गर्मजोशी भरे संबंध भारत–रूस साझेदारी की बड़ी ताकत हैं, लेकिन विशेषज्ञ साफ कहते हैं कि केवल राजनीतिक मित्रता पर्याप्त नहीं होगी। व्यापार को संरचनात्मक स्तर पर मजबूती देनी होगी और नए बाजार तैयार करने होंगे। यदि दोनों देश रणनीतिक, तकनीकी और व्यापारिक प्रक्रियाओं में गहराई से सुधार करते हैं, तो 100 बिलियन डॉलर का लक्ष्य आने वाले वर्षों में हासिल किया जा सकता है।

कुल मिलाकर, मोदी–पुतिन की मजबूत व्यक्तिगत केमिस्ट्री ने भारत–रूस संबंधों को कूटनीति और वैश्विक मंचों पर नई ऊँचाइयाँ दी हैं, लेकिन व्यापारिक साझेदारी को अभी एक लंबा सफर तय करना बाकी है। यही वह क्षेत्र है जिस पर दोनों देशों की साझा प्राथमिकता आने वाले वर्षों में केंद्रित रहने की उम्मीद है।

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