Wednesday, December 24, 2025

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अपनों के ही चक्रव्यूह में घिरीं ममता बनर्जी: टीएमसी विधायकों के बयानों ने मुख्यमंत्री को मंदिर-मस्जिद के विवाद में उलझाया

कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों अपनी ही पार्टी के भीतर से उठ रही विरोधाभासी आवाजों के कारण रक्षात्मक मुद्रा में नजर आ रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि टीएमसी के ही कुछ विधायकों और नेताओं द्वारा हाल के दिनों में दिए गए विवादित धार्मिक बयानों ने मुख्यमंत्री को ‘मंदिर बनाम मस्जिद’ की राजनीति में उलझा कर रख दिया है। इन बयानों के चलते विपक्षी दल भाजपा को सरकार पर ‘तुष्टीकरण’ और ‘ध्रुवीकरण’ के आरोप लगाने का सीधा अवसर मिल गया है।

विधायकों की बयानबाजी ने बढ़ाई सरकार की मुश्किल

पिछले कुछ हफ्तों में तृणमूल कांग्रेस के कुछ प्रभावशाली विधायकों ने सार्वजनिक मंचों से ऐसे बयान दिए हैं, जिनसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचने और सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की स्थिति पैदा हुई है। जहाँ एक ओर कुछ नेता एक विशेष समुदाय के पक्ष में खुलकर बोलते नजर आए, वहीं दूसरी ओर कुछ अन्य नेताओं ने मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों को लेकर ऐसी टिप्पणियां कीं, जिनसे पार्टी की ‘धर्मनिरपेक्ष’ छवि को धक्का लगा है।

विकास के एजेंडे से भटका ध्यान

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार राज्य में विकास कार्यों और केंद्र द्वारा रोकी गई धनराशि (जैसे मनरेगा फंड) को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि, उनकी अपनी ही पार्टी के विधायकों द्वारा पैदा किए गए धार्मिक विवादों ने इन मुद्दों को हाशिए पर धकेल दिया है। जानकारों का कहना है कि पार्टी के भीतर बढ़ता यह ‘धार्मिक विमर्श’ ममता बनर्जी के उस मूल संदेश को कमजोर कर रहा है, जिसमें वे सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की बात करती हैं।

विपक्ष को मिला हमलावर होने का मौका

भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इन बयानों को हाथों-हाथ लिया है। नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी सहित कई भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया है कि ममता बनर्जी के विधायक राज्य की कानून-व्यवस्था से ध्यान भटकाने के लिए जानबूझकर सांप्रदायिक माहौल गरमा रहे हैं। भाजपा का तर्क है कि मुख्यमंत्री अपने विधायकों पर नियंत्रण खो चुकी हैं और टीएमसी अब पूरी तरह से वोट बैंक की राजनीति के लिए तुष्टीकरण के रास्ते पर चल रही है।

पार्टी के भीतर मतभेद की आहट

सूत्रों की मानें तो टीएमसी के भीतर एक धड़ा ऐसा भी है जो विधायकों की इस तरह की बयानबाजी से खुश नहीं है। इस गुट का मानना है कि ऐसे बयानों से पार्टी को मध्यमवर्गीय हिंदू मतदाताओं के बीच नुकसान उठाना पड़ सकता है। मुख्यमंत्री ने हाल ही में पार्टी की एक आंतरिक बैठक में नेताओं को विवादित मुद्दों पर बोलने से बचने की सलाह दी थी, लेकिन जमीन पर इसका असर होता नहीं दिख रहा है।

आगामी चुनावों पर पड़ सकता है असर

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ममता बनर्जी जल्द ही अपनी पार्टी के प्रवक्ताओं और विधायकों को अनुशासित करने में सफल नहीं हुईं, तो आने वाले नगर निगम और अन्य स्थानीय चुनावों में यह ‘मंदिर-मस्जिद’ का नैरेटिव टीएमसी के लिए मुसीबत बन सकता है। फिलहाल, ममता बनर्जी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी सरकार को इन विवादों से बाहर निकालकर पुनः प्रशासनिक और विकास के कार्यों पर केंद्रित करने की है।

 

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