कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी पूर्व पीएम जस्टिन ट्रूडो के समय में भारत के साथ बढ़ी तल्खी को पाटने के संकेत दे रहे हैं। 110 साल से अधिक पुरानी कोमागाटा मारू की घटना पर उनकी टिप्पणी से यह संकेत मिलते हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने 1914 की कोमागाटा मारू घटना, जिसमें 376 भारतीय प्रवासियों को कनाडा में घुसने रोक दिया गया था, पर टिप्पणी की है। कार्नी ने कहा है कि यह घटना इस बात की “सख्त याद दिलाती है” कि हमारा देश अपने मूल्यों से कैसे चूक गया? उन्होंने कनाडा के लोगों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि इस तरह के अन्याय फिर कभी न दोहराए जाएं। कार्नी ने कहा आइए हम एक ऐसे भविष्य का निर्माण करें जहां समावेश एक नारा न होकर हकीकत बन जाए। 1914 में, कोमागाटा मारू नामक एक जापानी स्टीमर ने प्रशांत महासागर में एक लंबी यात्रा के बाद वैंकूवर के बंदरगाह पर लंगर डाला था। कार्नी ने बताया कि जहाज पर सवार सिख, मुस्लिम और हिंदू धर्मों के 376 लोग शरण और सम्मान की तलाश में यहां पहुंचे थे।
कार्नी ने शुक्रवार को कोमागाटा मारू घटना की याद में एक बयान में कहा, “कनाडाई अधिकारियों ने बहिष्कार और भेदभावपूर्ण कानूनों का उपयोग करते हुए उन्हें प्रवेश देने से इनकार कर दिया।” उनके कष्टों को याद करते हुए कार्नी ने कहा कि दो महीने तक यात्रियों को जहाज पर ही रोके रखा गया तथा उन्हें भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधा से वंचित रखा गया।
उन्होंने कहा, “जब उन्हें भारत लौटने के लिए मजबूर किया गया तो उनमें से कई को या तो जेल में डाल दिया गया या मार दिया गया।” कनाडा के प्रधानमंत्री ने कहा, “कोमागाटा मारू त्रासदी इस बात की स्पष्ट याद दिलाती है कि कैसे हमारे इतिहास के कुछ क्षणों में कनाडा उन मूल्यों से चूक गया जिन्हें हम प्रिय मानते हैं।” कार्नी ने कहा, “हम अतीत को फिर से नहीं लिख सकते, लेकिन हमें उसका सामना करना होगा; उद्देश्यपूर्ण तरीके से कार्य करना होगा, यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह के अन्याय कभी न दोहराए जाएं, और एक मजबूत भविष्य का निर्माण करना होगा जहां समावेशिता एक नारा नहीं, बल्कि एक वास्तविकता हो – जिसे जिया जाए, अभ्यास में लाया जाए और जिसका बचाव किया जाए।” कनाडाई पीएम ने कहा कि इस घटना की वर्षगांठ को स्मरण और विवेक की पुकार के रूप में मनाएं। अतीत का सम्मान करना हमें इस घटना से सीखनी है।