भारतीय वायुसेना की हवाई क्षमताओं को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण रक्षा सौदा अंतिम चरण में पहुंच गया है। इस्राइल ने भारत को छह मिड-एयर रिफ्यूलर विमान प्रदान करने पर सहमति जताई है। लगभग 8,000 करोड़ रुपये मूल्य वाले इस सौदे के तहत भारतीय वायुसेना को मिलने वाले ये विमान पुराने बोइंग प्लेटफॉर्म पर आधारित होंगे, जिनमें उन्नत तकनीकी संशोधन किए जाएंगे।
रक्षा सूत्रों के अनुसार, इन विमानों में अत्याधुनिक रिफ्यूलिंग सिस्टम लगाया जाएगा, जिससे भारतीय लड़ाकू विमानों की रेंज और ऑपरेशनल क्षमता में भारी बढ़ोतरी होगी। पुराने बोइंग विमानों को इस्राइल की अत्याधुनिक एवियोनिक्स, सेंसर और रिफ्यूलिंग तकनीक के साथ अपग्रेड किया जाएगा, ताकि वे आधुनिक युद्ध परिस्थितियों में अधिक प्रभावी साबित हो सकें। इस तकनीक के जुड़ने से भारतीय वायुसेना लंबी दूरी के मिशनों, समुद्री निगरानी और सामरिक अभियानों को अधिक सटीकता और स्थायित्व के साथ अंजाम दे सकेगी।
यह सौदा भारतीय वायुसेना की उस लंबे समय से चली आ रही जरूरत को पूरा करेगा, जिसमें मिड-एयर रिफ्यूलिंग क्षमता बढ़ाना शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल था। वर्तमान में सीमित संख्या में उपलब्ध रिफ्यूलर विमानों के कारण कई लंबी दूरी के मिशनों को बाधाओं का सामना करना पड़ता था। नए विमानों के शामिल होने से वायुसेना की परिचालन क्षमता न केवल बढ़ेगी, बल्कि विभिन्न मोर्चों पर त्वरित प्रतिक्रिया देने की क्षमता भी मजबूत होगी।
सूत्र बताते हैं कि इन विमानों को चरणबद्ध तरीके से भारत भेजा जाएगा। प्रत्येक विमान के संशोधन से पहले कठोर परीक्षण किए जाएंगे, ताकि उनकी विश्वसनीयता व सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इस्राइल की तकनीक रक्षा क्षेत्र में विश्वसनीय मानी जाती है और भारत-इस्राइल के बीच लंबे समय से चले आ रहे रणनीतिक संबंधों का यह सौदा एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह सौदा भारतीय वायुसेना के लिए गेम-चेंजर साबित होगा। चीन और पाकिस्तान की सीमा से जुड़े क्षेत्रों में बढ़ती सामरिक चुनौतियों के मद्देनज़र हवा में ईंधन भरने की क्षमता का मजबूत होना भारत की रणनीतिक बढ़त को और स्पष्ट करेगा। आने वाले वर्षों में ये विमान भारतीय वायुसेना की हवाई रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे और लंबे अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा करने में सहायक होंगे।
सरकार की ओर से जल्द ही आधिकारिक घोषणा होने की संभावना है। रक्षा मंत्रालय का मानना है कि यह सौदा भारत की सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग दोनों को नई दिशा देगा।





