नई दिल्ली / वॉशिंगटन। भारत और अमेरिका ने रक्षा क्षेत्र में 10 वर्ष के दीर्घकालिक सहयोग ढांचे (Defence Cooperation Framework) पर सहमति बनाकर द्विपक्षीय रणनीतिक संबंधों को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। यह समझौता दोनों देशों के बीच रक्षा उत्पादन, तकनीकी हस्तांतरण, संयुक्त अभ्यास, अनुसंधान एवं विकास और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सामरिक साझेदारी को और सुदृढ़ करेगा।
दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों की मौजूदगी में समझौता
इस ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की मौजूदगी में हुए। बैठक के दौरान दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडलों ने भविष्य की रणनीतिक साझेदारी, रक्षा उपकरण निर्माण, नौसैनिक सहयोग और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में संभावनाओं पर भी विस्तार से चर्चा की।
समझौते के तहत भारत और अमेरिका अब संयुक्त रक्षा परियोजनाएं विकसित करेंगे, जिनमें अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमान, ड्रोन सिस्टम, नौसैनिक जहाज और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित रक्षा समाधान शामिल हैं।
“21वीं सदी की चुनौतियों के लिए साझेदारी”
हस्ताक्षर के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग केवल रणनीतिक जरूरत नहीं, बल्कि वैश्विक स्थिरता और शांति का आधार है। उन्होंने कहा,
“यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं के बीच पारस्परिक विश्वास को और मजबूत करेगा। हम भविष्य की चुनौतियों — चाहे वह समुद्री सुरक्षा हो या अंतरिक्ष और साइबर खतरों से निपटना — संयुक्त रूप से करेंगे।”
वहीं, अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने इसे “ऐतिहासिक मोड़” बताया और कहा कि यह साझेदारी “लोकतांत्रिक मूल्यों और साझा हितों पर आधारित है।” उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत को न केवल एक साझेदार, बल्कि एक प्रमुख रक्षा और तकनीकी सहयोगी के रूप में देखता है।
‘मेक इन इंडिया’ के तहत रक्षा उत्पादन में सहयोग
समझौते में यह भी प्रावधान है कि अमेरिकी कंपनियां भारत में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत उत्पादन इकाइयां स्थापित करेंगी। इसका उद्देश्य उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकी का स्थानीय निर्माण और निर्यात क्षमता में वृद्धि करना है।
भारत अब अमेरिकी रक्षा कंपनियों के साथ मिलकर इंजन निर्माण, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स, मिसाइल सिस्टम और लड़ाकू विमान पुर्जों के संयुक्त विकास पर काम करेगा। यह कदम भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
नौसेना और इंडो-पैसिफिक में सहयोग
दोनों देशों ने हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र में सुरक्षा और नौवहन की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए संयुक्त नौसैनिक अभ्यास बढ़ाने पर भी सहमति जताई। इसके तहत “मालाबार” जैसे त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय अभ्यासों को और व्यापक किया जाएगा।
अमेरिकी पक्ष ने कहा कि भारत की भौगोलिक स्थिति और सैन्य क्षमता इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
तकनीक हस्तांतरण और नवाचार पर जोर
भारत और अमेरिका ने रक्षा अनुसंधान संस्थानों और प्राइवेट सेक्टर के बीच इनnovation और तकनीकी साझेदारी बढ़ाने पर भी सहमति जताई। इसके तहत दोनों देश संयुक्त रक्षा अनुसंधान केंद्र (Joint Defence Innovation Cell) स्थापित करेंगे, जहां क्वांटम कंप्यूटिंग, साइबर सुरक्षा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी परियोजनाओं पर काम होगा।
“भारत-अमेरिका साझेदारी वैश्विक संतुलन की कुंजी”
विशेषज्ञों का कहना है कि यह 10 वर्षीय रक्षा सहयोग समझौता भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक विश्वास और आपसी निर्भरता के नए युग की शुरुआत है। यह न केवल सैन्य सहयोग का प्रतीक है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की बढ़ती भूमिका का संकेत भी है।
समझौते के साथ दोनों देशों ने यह भी कहा कि रक्षा संबंधों के साथ-साथ वे लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवता और वैश्विक शांति के प्रति अपनी साझा प्रतिबद्धता को और मजबूत करेंगे।
“यह समझौता भारत-अमेरिका संबंधों को आने वाले दशक के लिए न सिर्फ नई दिशा देगा, बल्कि एक मजबूत, सुरक्षित और स्थिर विश्व व्यवस्था की नींव रखेगा।” — संयुक्त बयान
यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक अस्थिरता, तकनीकी प्रतिस्पर्धा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ते तनावों के बीच भारत और अमेरिका साझा सुरक्षा हितों को लेकर और अधिक करीब आ रहे हैं।


