देश में बढ़ती आर्थिक समृद्धि के समानांतर परिवारों में घटते संवाद और बुजुर्गों से दूर होती पीढ़ियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि भौतिक प्रगति ने भले ही जीवन को सुविधाजनक बनाया हो, लेकिन परिवारों में भावनात्मक दूरी बढ़ती जा रही है, जिसका सबसे अधिक असर हमारे बुजुर्गों पर पड़ रहा है।
एक कार्यक्रम में संबोधन के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि समाज में आज ऐसी स्थितियां विकसित हो रही हैं, जहां युवा तेजी से अपनी करियर की दौड़ में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन इसी बीच घर के बुजुर्ग अकेलेपन, उपेक्षा और मानसिक तनाव का शिकार बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि “समृद्धि बढ़ रही है, लेकिन रिश्तों की गर्माहट कम होती जा रही है।”
बुजुर्गों की हालत पर जताई चिंता
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आधुनिक जीवनशैली, नौकरी की मजबूरियां और व्यक्तिगत व्यस्तताएं कई बार बुजुर्गों को परिवार में उपेक्षित महसूस करा देती हैं। उन्होंने बताया कि न्यायिक प्रक्रिया के दौरान उन्हें ऐसे मामलों का सामना करना पड़ता है, जिनमें बुजुर्ग संपत्ति विवाद, सामाजिक अलगाव या परिवार द्वारा असहयोग के चलते परेशान रहते हैं।
उन्होंने कहा कि यह स्थिति न केवल सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करती है, बल्कि युवा पीढ़ी की नैतिक जिम्मेदारियों पर भी प्रश्न खड़ा करती है।
जस्टिस सूर्यकांत ने युवाओं से अपील की कि वे अपने करियर और निजी महत्वाकांक्षाओं के बीच परिवार और विशेष रूप से बुजुर्गों के लिए समय जरूर निकालें।
उन्होंने कहा—“बुजुर्गों ने अपना संपूर्ण जीवन हमारे भविष्य को सुरक्षित करने में लगाया है। उनकी जरूरतें आर्थिक नहीं, भावनात्मक अधिक हैं। उन्हें सम्मान, संवाद और साथ की आवश्यकता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि तकनीक ने जहां जीवन को सरल बनाया है, वहीं इसने रिश्तों में दूरियां भी पैदा की हैं। ऐसे में युवाओं को चाहिए कि वे अपने माता–पिता और दादा–दादी से नियमित बातचीत करें, उनके साथ समय बिताएं और उनकी जरूरतों को समझें।
जस्टिस सूर्यकांत के अनुसार परिवार भारतीय समाज की मूल इकाई है और इसका मजबूत रहना समाज की स्थिरता के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने सुझाव दिया कि परिवारों में आपसी संवाद बढ़ाने, परस्पर सम्मान की भावना बनाए रखने और संयुक्त जिम्मेदारियों को स्वीकार करने की संस्कृति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
जस्टिस सूर्यकांत के वक्तव्य ने समाज में बढ़ते एकाकीपन और बुजुर्गों के प्रति अनदेखी की ओर ध्यान दिलाया है। उनका संदेश यही है कि आर्थिक प्रगति की राह पर चलते हुए मानवीय मूल्यों, संवेदनाओं और परिवार की भूमिका को न भूलें, क्योंकि समृद्धि तभी सार्थक है जब उसके साथ रिश्तों का स्नेह भी कायम रहे।





