नई दिल्ली। बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) यानी मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर अब कानूनी जंग तेज हो गई है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग (ECI) ने गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के हलफनामे की विश्वसनीयता पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिए। आयोग ने अदालत को बताया कि एडीआर की ओर से दायर हलफनामे में मतदाता सूची से नाम हटाने के जिस व्यक्ति का हवाला दिया गया है, उसका विवरण “फर्जी और गलत” पाया गया है।
आयोग ने कहा— “एडीआर के हलफनामे में दी गई जानकारी झूठी”
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि एडीआर के वकील प्रशांत भूषण ने जिस व्यक्ति का हलफनामा अदालत में दिया, उसकी जांच में पाया गया कि वह मतदाता सूची में मौजूद ही नहीं है। उन्होंने कहा, “हलफनामे में दिए गए मतदाता नंबर और जानकारी की जांच में पता चला कि वह विवरण किसी अन्य महिला मतदाता का है। यानी दस्तावेज झूठे हैं।”
द्विवेदी ने अदालत से कहा कि यह गंभीर मामला है, क्योंकि एडीआर चुनाव आयोग पर गलत आरोप लगाकर मतदाता सूची प्रक्रिया को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अंतिम मतदाता सूची जारी की जा चुकी है, और अब अपील दाखिल करने के लिए पांच दिन का समय बाकी है, लेकिन एडीआर और राजनीतिक दल लोगों की मदद करने के बजाय अदालत में भ्रम फैला रहे हैं।
प्रशांत भूषण का जवाब
इस पर एडीआर की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्होंने जो जानकारी दी है, वह उन्हें “विश्वसनीय व्यक्ति” ने दी थी और आयोग चाहे तो जांच करा सकता है। उन्होंने दावा किया कि उनका उद्देश्य किसी को गुमराह करना नहीं, बल्कि मतदाता सूची में हो रही अनियमितताओं को उजागर करना है।
हालांकि अदालत ने भूषण से कहा कि कोर्ट में दाखिल किए जाने वाले दस्तावेजों के लिए वकीलों की जिम्मेदारी तय होती है, इसलिए उन्हें ऐसी सूचनाओं की पुष्टि कर ही पेश करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी
अदालत ने हलफनामे में दी गई गलत जानकारी पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति ने गलत सूचना दी है, तो यह अदालत की कार्यवाही को प्रभावित करता है। अदालत ने टिप्पणी की—
“हम इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना बातों को पसंद नहीं करते। जिसने भी हलफनामा दिया है, उसे सही जानकारी देनी चाहिए थी।”
अन्य पक्षों की दलीलें
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा कि जिस संस्था ने झूठे तथ्यों के आधार पर हलफनामा दाखिल किया है, उसे अदालत में सुना ही नहीं जाना चाहिए।
वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने भी एसआईआर प्रक्रिया की खामियों को उजागर करते हुए कहा कि कई इलाकों में एक ही घर में सैकड़ों मतदाताओं के नाम दर्ज हैं। उन्होंने आंकड़ों के साथ अपनी दलीलें रखते हुए अदालत से मांग की कि चुनाव आयोग से इस पर विस्तृत जवाब मांगा जाए।
अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को
सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह पूरे मामले पर 16 अक्टूबर को दोबारा सुनवाई करेगा। अदालत ने संकेत दिया कि तब तक सभी पक्ष अपने-अपने दस्तावेजों की सत्यता का प्रमाण प्रस्तुत करें।
इस प्रकार, बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण से जुड़े इस विवाद ने अब कानूनी और राजनीतिक दोनों स्तरों पर नया मोड़ ले लिया है।
बिहार SIR मामला: चुनाव आयोग ने एडीआर के हलफनामे पर उठाए गंभीर सवाल, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मचा हंगामा





