पौड़ी गढ़वाल। राठ क्षेत्र में सदियों से आयोजित होने वाला ऐतिहासिक बूंखाल मेला अब जिले की नई सांस्कृतिक पहचान के रूप में उभर रहा है। कभी यह मेला नर भैंसों की बलि की परंपरा के कारण जाना जाता था, लेकिन समय के साथ इसका स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। आज बूंखाल मेला आस्था, लोक-परंपराओं और सामाजिक समरसता का उत्सव बन गया है।
कभी बलि प्रथा का प्रमुख केंद्र
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, बूंखाल मेले की उत्पत्ति क्षेत्र की देवस्थानी मान्यताओं से जुड़ी है। पहले इस मेले में नर भैंसों की बलि देकर सुख-समृद्धि, बेहतर फसल और पशुधन की सुरक्षा की कामना की जाती थी। बाद में सामाजिक संवेदनशीलता और कानूनी प्रतिबंधों के चलते इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
बदला हुआ स्वरूप—आस्था और संस्कृति का संगम
वर्तमान में बूंखाल मेला धार्मिक अनुष्ठानों, लोक-नृत्य, लोक-गीत, हस्तशिल्प प्रदर्शनियों और पारंपरिक खेलों के साथ पूरे क्षेत्र में उत्साह का माहौल पैदा करता है। बड़ी संख्या में ग्रामीणों, श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भागीदारी से यह मेला सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक बन गया है। स्थानीय कलाकारों और कारीगरों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है।
स्थानीय अर्थव्यवस्था को नई गति
मेले से राठ क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है। स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएँ स्थानीय उत्पाद बेच रही हैं, जबकि युवा पर्यटन और सेवाओं के माध्यम से आय के नए साधन विकसित कर रहे हैं। प्रशासन द्वारा मेले को औपचारिक रूप से पर्यटन कैलेंडर में शामिल करने की दिशा में भी प्रयास किए जा रहे हैं।
सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण में युवाओं की अहम भूमिका
सामाजिक संगठनों का कहना है कि बूंखाल मेला केवल उत्सव नहीं, बल्कि राठ क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर है। युवाओं द्वारा परंपराओं को नए अंदाज़ में प्रस्तुत करने से मेले का आकर्षण और बढ़ा है, जिससे इसकी लोकप्रियता निरंतर बढ़ रही है।
प्रशासन ने की व्यापक व्यवस्था
जिला प्रशासन ने सुरक्षा, यातायात, स्वच्छता और अस्थायी सुविधाओं के लिए विशेष प्रबंधन किया है। अधिकारियों का कहना है कि बूंखाल मेला अब पौड़ी गढ़वाल का “सांस्कृतिक ब्रांड” बन चुका है और इसे राज्य के प्रमुख पर्वों की श्रेणी में लाने की योजना पर काम चल रहा है।
बूंखाल मेले का निरंतर बदलता स्वरूप इस बात का प्रमाण है कि परंपराएँ समय के साथ भले रूप बदल लें, लेकिन उनकी सांस्कृतिक जड़ें समाज को जोड़ने का कार्य करती रहती हैं।
हर ब्लॉक में विकसित होगा ‘आध्यात्मिक गांव’
देहरादून। राज्य में आध्यात्मिक पर्यटन को नई दिशा देने के उद्देश्य से उत्तराखंड सरकार प्रत्येक ब्लॉक में एक ‘आध्यात्मिक गांव’ विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना लेकर आगे बढ़ रही है। इस परियोजना के पायलट चरण के लिए गांवों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। संबंधित विभागों से अपने-अपने क्षेत्रों से उपयुक्त गांवों के प्रस्ताव शीघ्र भेजने को कहा गया है।
सूत्रों के अनुसार, सरकार का लक्ष्य राज्य की सांस्कृतिक विरासत, पारंपरिक आस्था-स्थलों, योग–ध्यान केंद्रों, स्थानीय जीवन-शैली और प्राकृतिक सौंदर्य को एक समग्र मॉडल के रूप में प्रस्तुत करना है। ऐसे गांवों का चयन किया जाएगा जहां धार्मिक एवं सांस्कृतिक वातावरण पहले से मौजूद हो और उसे विकसित कर पर्यटकों को बेहतर आध्यात्मिक अनुभव दिया जा सके।
बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर जोर
योजना के प्रारंभिक चरण में चयनित गांवों में पहुंच मार्गों के सुधार, सफाई–सौंदर्यीकरण, होम-स्टे के प्रोत्साहन, स्थानीय उत्पादों के विपणन, सामुदायिक अवसंरचना तथा आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए विशेष स्थलों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
परियोजना को पर्यटन विभाग और ग्रामीण विकास विभाग संयुक्त रूप से क्रियान्वित करेंगे। अधिकारियों को निर्देश है कि पायलट गांव ऐसे हों जहां स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो और परंपराओं के संरक्षण के साथ ग्रामीणों को आर्थिक लाभ भी प्राप्त हो।
ग्रामीण आजीविका में आएगा सुधार
अधिकारियों का मानना है कि यह योजना न केवल आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार, सांस्कृतिक संरक्षण और अवसंरचना विकास को भी नई दिशा देगी। चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकार विस्तृत कार्ययोजना प्रस्तुत करेगी।





