केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को पेट्रोल, डीजल को जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के तहत लाने के लिए आम सहमति बनाने की जरूरत बताई। पुणे इंटरनेशनल सेंटर (पीआईसी) के 14वें स्थापना दिवस पर आयोजित व्याख्यान में ‘आने वाले दशक में भारत की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिए रणनीति और उपाय’ विषय पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं लंबे समय से पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की बात कर रहा हूं। वित्त मंत्री ने भी कई मौकों पर ईंधन को जीएसटी के तहत लाने की बात कही है।’ भारत की विशाल आबादी को देखते हुए ऊर्जा सुरक्षा बेहद जरूरी है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिए, भारत को रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों पर ध्यान केंद्रित करने और आयातित ईंधन पर अपनी भारी निर्भरता को कम करने के लिए अन्वेषण और ईंधन उत्पादन पर फोकस करने की जरूरत है। पुरी ने कहा कि ‘140 करोड़ की आबादी के साथ भारत की ऊर्जा खपत वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक है। इसकी वजह से वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में भारत एक प्रमुख खिलाड़ी है।’ उन्होंने कहा कि अगले दो दशकों में, दुनिया में ऊर्जा खपत में जो वृद्धि होगी, उसमें 25 प्रतिशत योगदान अकेले भारत करेगा।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ‘पेट्रोल डीजल को जीएसटी दायरे में लाने के लिए सभी राज्यों की सहमति जरूरी है और राज्यों की इसकी चुनौतियों को भी स्वीकार करना होगा। दरअसल अभी राज्यों की कमाई में सबसे बड़ा हिस्सा पेट्रोल डीजल पर लगने वाला वैट और शराब बिक्री से मिलने वाला पैसा है। केंद्र सरकार सहयोग करने के लिए तैयार है।’ पुरी ने बताया कि केरल उच्च न्यायालय ने जीएसटी परिषद में इस मुद्दे पर चर्चा करने का सुझाव दिया था, लेकिन केरल के वित्त मंत्री सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि गैर-भाजपा राज्य अतिरिक्त वैट को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
उन्होंने कहा, ‘वर्तमान में ऐसी स्थिति में हैं कि भाजपा शासित राज्यों ने अपना वैट कम कर दिया है और गैर-भाजपा राज्य अतिरिक्त वैट को छोड़ने को भी तैयार नहीं हैं, इसलिए मुझे नहीं लगता कि ऐसा हो रहा है।’ उन्होंने ऊर्जा सुरक्षा के लिए तीन प्राथमिक चुनौतियों की पहचान की: उपलब्धता, सामर्थ्य और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में बदलाव।’ पुरी ने यह भी कहा कि ‘ग्रीन हाइड्रोजन भविष्य के ईंधन का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन इसकी सफलता स्थानीय मांग और उत्पादन पर निर्भर करती है, और तकनीकी प्रगति संबंधित लागत चुनौतियों को दूर करने में मदद कर सकती है।’ वैश्विक तेल बाजारों पर, उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर तेल की कोई कमी नहीं है, लेकिन बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव से तेल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।