देहरादून: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सोशल मीडिया हैंडल और कार्यकर्ताओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। रावत का आरोप है कि भाजपा द्वारा आधुनिक तकनीक (AI) का सहारा लेकर उनके फर्जी वीडियो तैयार किए जा रहे हैं, ताकि सार्वजनिक रूप से उनकी राजनीतिक और व्यक्तिगत छवि को नुकसान पहुँचाया जा सके। इस संबंध में उन्होंने देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) को तहरीर देकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
क्या है पूरा विवाद?
- भ्रामक वीडियो का प्रसार: हरीश रावत का कहना है कि सोशल मीडिया पर एक वीडियो प्रसारित किया जा रहा है, जिसमें उन्हें कुछ ऐसी बातें कहते हुए दिखाया गया है जो उन्होंने कभी कही ही नहीं।
- AI और डीपफेक का इस्तेमाल: पूर्व सीएम के अनुसार, यह वीडियो पूरी तरह से ‘एडिटेड’ है और इसमें उनकी आवाज और चेहरे के हाव-भाव बदलने के लिए डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।
- चुनावी और राजनीतिक षड्यंत्र: रावत ने इसे एक सोची-समझी साजिश करार देते हुए कहा कि विपक्षी दल मुद्दों पर लड़ने के बजाय अब चरित्र हनन के लिए तकनीक का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।
पुलिस को दी गई तहरीर की मुख्य बातें
- नामजद शिकायत: हरीश रावत ने अपनी तहरीर में कुछ विशेष सोशल मीडिया एकाउंट्स और भाजपा से जुड़े कार्यकर्ताओं का जिक्र किया है, जिन्होंने इस वीडियो को सबसे पहले साझा किया।
- आईटी एक्ट के तहत कार्रवाई की मांग: उन्होंने पुलिस से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की संबंधित धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करने का आग्रह किया है।
- जांच की अपील: रावत ने मांग की है कि इस वीडियो की फॉरेंसिक जांच कराई जाए ताकि यह साबित हो सके कि इसे आधुनिक सॉफ्टवेयर के जरिए बदला गया है।
डीपफेक तकनीक: राजनीति के लिए नया खतरा
विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीति में AI का ऐसा इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
- पहचानना मुश्किल: डीपफेक तकनीक से बने वीडियो इतने असली लगते हैं कि आम जनता के लिए असली और नकली में अंतर करना कठिन हो जाता है।
- भ्रामक सूचनाएं: चुनाव के समय इस तरह के वीडियो मतदाताओं को गुमराह करने का एक सशक्त लेकिन अनैतिक हथियार बन रहे हैं।
भाजपा की प्रतिक्रिया
वहीं दूसरी ओर, भाजपा के स्थानीय प्रवक्ताओं ने इन आरोपों को निराधार बताया है। पार्टी का कहना है कि कांग्रेस नेता अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन बचाने के लिए इस तरह के आरोप लगा रहे हैं। भाजपा का तर्क है कि वे केवल सोशल मीडिया पर उपलब्ध सामग्री को साझा करते हैं और किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी में शामिल नहीं हैं।
देहरादून पुलिस ने तहरीर स्वीकार कर ली है और मामले को साइबर सेल (Cyber Cell) को सौंप दिया है। साइबर एक्सपर्ट्स अब वीडियो के मूल स्रोत (Original Source) का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि यह स्पष्ट हो सके कि वीडियो के साथ छेड़छाड़ कहाँ और किसने की है।





