उपशीर्षक: प्रतिबंधित सूची में एंटीबायोटिक, एंटीवायरल और संक्रमण रोधी दवाएं शामिल; विशेषज्ञों ने बताया जनस्वास्थ्य से जुड़ा अहम निर्णय
रिपोर्ट:
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने पशुओं के इलाज में उपयोग की जा रही 34 दवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। प्रतिबंधित दवाओं में कई एंटीबायोटिक, एंटीवायरल और संक्रमण रोधी दवाएं शामिल हैं, जिन्हें अब देश में न तो बेचा जाएगा और न ही पशु उपचार में प्रयोग किया जा सकेगा। सरकार ने यह फैसला पशुओं और मानव स्वास्थ्य दोनों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया है।
कृषि और पशुपालन मंत्रालय के अनुसार, ये दवाएं लंबे समय से पशुओं में संक्रमण, बुखार, परजीवी नियंत्रण और उत्पादन बढ़ाने के लिए उपयोग में लाई जा रही थीं। लेकिन हाल के अध्ययनों में पाया गया कि इन दवाओं का अत्यधिक उपयोग एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (Antimicrobial Resistance – AMR) बढ़ा रहा है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कई पशु उत्पाद जैसे दूध, मांस और अंडों में इन दवाओं के अवशेष (residues) पाए गए, जिससे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ने की संभावना बढ़ गई थी। इसी को देखते हुए विशेषज्ञ समिति की सिफारिश पर सरकार ने 34 दवाओं को बाजार से हटाने का निर्णय लिया है।
प्रतिबंधित दवाओं में शामिल हैं
सूत्रों के अनुसार, जिन दवाओं पर रोक लगाई गई है उनमें टायलोसिन (Tylosin), एनरोफ्लॉक्सासिन (Enrofloxacin), क्लोरटेट्रासाइक्लिन (Chlortetracycline), और नाइट्रोफ्यूरान श्रेणी की दवाएं प्रमुख हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से मवेशियों, पोल्ट्री और डेयरी पशुओं में संक्रमण रोकने के लिए किया जाता था।
मानव स्वास्थ्य पर असर की चिंता
विशेषज्ञों का कहना है कि इन दवाओं के अवशेष जब दूध या मांस के जरिए मानव शरीर में प्रवेश करते हैं, तो लंबे समय में एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम हो जाता है। इससे आम संक्रमणों का इलाज कठिन होता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी ऐसे दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल को नियंत्रित करने की सिफारिश की थी।
पशुपालकों और पशु चिकित्सकों को जारी की जाएगी नई गाइडलाइन
सरकार अब पशुपालकों और पशु चिकित्सकों के लिए नई ‘उपचार गाइडलाइन’ जारी करने की तैयारी में है, जिसमें बताया जाएगा कि किन दवाओं का उपयोग सुरक्षित है और किनके स्थान पर वैकल्पिक उपचार अपनाया जाए। इसके अलावा, पशु औषधि निर्माण कंपनियों को भी अपनी दवाओं की संरचना और उपयोग निर्देशों में बदलाव करने को कहा गया है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने किया निर्णय का स्वागत
पशु चिकित्सा विशेषज्ञों और स्वास्थ्य संगठनों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह फैसला न केवल पशुओं की सुरक्षा के लिए, बल्कि मानव स्वास्थ्य और खाद्य श्रृंखला की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भी आवश्यक था।
गौरतलब है कि भारत में पशुपालन क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, और दूध व मांस उत्पादन में देश विश्व के अग्रणी देशों में शामिल है। ऐसे में दवाओं के सुरक्षित उपयोग को सुनिश्चित करना सार्वजनिक स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।





