हवा में मौजूद महीन कण और ट्रैफिक की आवाज दोनों मिलकर सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे ब्रेन स्ट्रोक का खतरा और बढ़ रहा है। स्वीडन के करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के एनवायर्नमेंटल मेडिसिन संस्थान का शोध जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों ने यूरोपीय संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशा-निर्देशों के आधार पर यह विश्लेषण किया है। इस रिसर्च में स्वीडन, डेनमार्क और फिनलैंड के करीब 1.37 लाख वयस्कों के डेटा को शामिल किया गया है। नतीजों से पता चला है कि प्रदूषण के महीन कण पीएम 2.5 की मात्रा में प्रति घन मीटर 5 माइक्रोग्राम की बढ़त स्ट्रोक के खतरे को नौ फीसदी तक बढ़ा सकती है। इसी तरह, ट्रैफिक शोर में 11 डेसिबल की बढ़ोतरी से यह खतरा छह फीसदी तक बढ़ जाता है। जब दोनों कारक एक साथ मौजूद होते हैं तो खतरा और अधिक बढ़ जाता है। शांत इलाकों, जहां शोर 40 डेसिबल तक था, में भी पीएम 2.5 के बढ़ने से स्ट्रोक का खतरा छह फीसदी तक बढ़ा, जबकि अधिक शोर वाले क्षेत्रों (80 डेसिबल) में यह खतरा 11 फीसदी तक पहुंच गया।
शोध के निष्कर्ष भारत जैसे देशों के लिए भी गंभीर चेतावनी हैं। भारत में वायु प्रदूषण और ट्रैफिक का शोर दोनों ही बड़ी समस्या हैं। दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 74 भारत में हैं। रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि बढ़ते प्रदूषण का असर सभी महानगरों पर पड़ रहा है। यहां तक कि कोलकाता, बंगलूरू और हैदराबाद जैसे शहर जहां भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियां कहीं ज्यादा अनुकूल हैं, ऐसे महानगरों में भी स्थिति चिंताजनक है।
जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि प्रदूषित हवा में थोड़े समय के लिए भी सांस लेने से हमारे सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित होती है। इसकी वजह से भावनाओं को नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है।