Tuesday, May 20, 2025

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जातिगत जनगणना पर RSS का बड़ा बयान

केंद्र की मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने की बात कही है। इसे लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने एक सधा हुआ रुख अपनाते हुए कहा है कि इसे ‘राजनीतिक हथियार’ के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

सूत्रों के अनुसार, संघ ने केंद्र सरकार के दशकीय जनगणना के साथ जाति-आधारित गणना करने के फैसले पर आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन इस मुद्दे पर अपनी सतर्कता और संवेदनशीलता जाहिर की है। आरएसएस हमेशा से जाति के आधार पर विभाजन और भेदभाव का विरोध करता रहा है। हालांकि, संगठन का मानना है कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए कोटा में उप-वर्गीकरण या क्रीमी लेयर जैसी व्यवस्थाओं को लागू करने से पहले सभी हितधारकों के साथ ‘परामर्श और सहमति’ बनाना जरूरी है। केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल को जातिगत जनगणना का निर्णय लिया है, इससे एक दिन पहले पीएम मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात हुई थी, जो इस मुद्दे पर संघ की सहमति की ओर इशारा करता है। आरएसएस अपनी ‘सामाजिक समरसता’ मुहिम के तहत हिन्दू समाज को एकजुट करने की दिशा में काम करता रहा है। संगठन का कहना है कि जातिगत गणना को ‘पॉलिटिकल टूल’ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

पिछले साल सितंबर में केरल के पलक्कड़ में मीडिया को संबोधित करते हुए RSS के मुख्य प्रवक्ता सुनील अंबेकर ने कहा था कि जाति सबंधी मुद्दे संवेदनशील हैं और राष्ट्रीय एक्ता व अखंडता के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा था, “इसे बहुत संवेदनशीलता के साथ संभाला जाना चाहिए, न कि चुनावी या राजनीतिक आधार पर।”

जातिगत जनगणना की मांग पर आरएसएस प्रवक्ता ने तब यह स्पष्ट किया था कि आरएसएस को जाति डेटा संग्रह करने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए हो, जो पिछड़े हैं और जिन्हें विशेष ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा था, “यह डेटा पहले भी एकत्रित किया जाता रहा है, लेकिन इसका उपयोग केवल उन समुदायों के कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि चुनावी राजनीतिक हथियार के रूप में।”

 

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